शिक्षा त अब धंधा बनल जा ता

by | Dec 12, 2011 | 1 comment

– जयंती पांडेय

जान जा भाई रामचेला, अब त शिक्षा जइसन पुण्य कामो धंधा बनत जा ता. जब से सेठ साहूकार लोग के ई बुझाइल कि पढ़ा के बड़हन आदमी बनावे के सपना बेचल जा सकेला तबसे ऊ लोग शिक्षा में हाथ गोड़ चलावे लागल लोग. पहिले सेठ लोग शिक्षा खातिर दान देत रहे आ बेसी से बेसी इहे चाहत रहे लोग कि उनकर बाप चाहे दादा चाहे अउरी केहु के नाँव से इस्कूल खुल जाव. लेकिन पढ़ावे लिखावे के काम पूरा मास्टर साहेब लोग के हाथ में रहत रहे. लेकिन आजु काल्हु त पूरा शिक्षा के उद्योग बना दिहल गइल बा आ सेठ लोग आ उनकर बड़हन बड़हन एकाउंटेंट लोग एकर काम काज सम्हार लिहल लोग.

शिक्षा त ओही दिन से धंधा बन गइल जबसे ट्यूशन के रिवाज शुरू भइल. अपने गाँव में देखऽ जगधर माट साहेब के, ना त बांके बाबू के. उनुका दुअरा रोज साँझि के पाँच सात गो लइका लउकत रहले सँ. ऊ लोग कबहु लइकन के अपना दुअरा पर पढ़ावे के पइसा ना लेत रहे लोग. लेकिन इहो बात ना रहे कि एकदम पइसा ना लेत रहे लोग. ऊ लोग उहे लइकन से पढ़ावे के पइसा लेत रहे लोग जेकरा घरे जाव लोग पढ़ावे खातिर. कबीर दास जी कहले बाड़े कि
गुरु गोविंद दोउ खड़े का के लागू पाँय
बलिहारी ऊ नोट के जे गुरू को लिया बोलाय.

ट्यूशन जबले ट्यूशन रहे तबले मास्टर साहेब के तनखा से बेसी ट्यूशन से आमदनी ना होत रहे. बस ओकरा से काम भर चले. जबसे ट्यूशन कोचिंग बन गइल तबसे ओकर कमाई मास्टर साहेब के तनखा से कई गुना बेसी हो गइल. हम त कलकाता गइल रहीं त एक हो गो मास्टर अइसन देखनी जे सौ सौ लइकन के पढ़ावत रहे लोग..

ई जान लऽ कि कवनो धंधा जब खूब बड़हन हो जाला तब ऊ ७द्योग कहावे लागेला. आ धंधा अपने से ना बढ़े, ओकरा के बढ़ावे के पड़ेला, फइलावे के पड़ेला. अब जवन मास्टर ट्यूशन के फइलावे के चक्कर में रहेला ऊ कबो किलास में ठीक से ना पढ़ावे. घर में खूब पढ़ावेला. सोझ बाति बा कि जे लइका खाली इस्कूल में पढ़ी ओकरा कम नम्बर आई. अब हार के लइका लोग मास्टर साहेब के गरे बोलावे लागेला लोग.

अब जइसे शिक्षा के उद्योग के चांस लउकल बस चट दे नेताजी लोग बियाबान में जमीन ले के इंजीनियरिंग कॉलेज खोले लागल. जेतहत घर ओकरा से बड़हन ओकर बोर्ड आ ओह में मशीन के नाम पर एगो पेंचकसो ना भेंटाई. लेकिन तबो ओह में लइका नाँव लिखइहें सँ, काहे कि ऊ इस्कूल से एम ए चाहे बी ए के सर्टिफिकेट ना मिली बलुक इंजिनियरिंग के डिग्री भेंटाई. अब जइसन कॉलेज वइसने इंजीनियर निकली लोग. बस जे इंजीनियर वगैरह के अबही दुनिया में इज्जत बा अब दुनिया ओही के बाद वाला पीढ़ी के लइकन के देख के हँस के निहाल हो जाई. देश के नाम कइसन होई ई अंदाजा लगा सकेलऽ.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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1 Comment

  1. चंदन कुमार मिश्र

    पटना में त अकेले एगो आदमी दू-तीन हजार लइकन तक के पर्हा रहल बाड़े।

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