सब गाँव के रस्ता रोटिए क ओर जाला

by | May 2, 2013 | 1 comment

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद जब कलकाता अइले त दू गो चीज देखि के अचरज में परि गइले. एक त हावड़ा के पुल आ ओहपर चलत लइका लईकी, आदमी मेहरारू, आ दोसरका इहवां के रेक्शा. रेक्शा देखि के सांचहुं लोग के बुद्धि काम ना करि. एह में आदमी बैल अइसन जोता के रेक्शा खींचेला. ओकरा देखि के बुझाला कि रेक्शा हाथ गोड़ से ना पेट से खीचाला. जे पेट ना रहित त आदमी कबहुं अइसन काम ना करीत. एकदम बाबा मैथिलीशरण के तर्ज में “रेक्शा जीवन हाय तुम्हारी यह कहानी, हाथो में हत्था और पीछे सवारी.” इहे ना कलकाता के बाहर सायकिल वाला रेक्शा चलेला जइसन अउरीओ जगह चलेला. केहु कबो सोचले बा ओकनी के जिनगी के बारे में. का देहलस ई जिनगी ओकनी के. कलकाता में अक्सर रेक्शा वाला अखबार पढ़त लउक जइहें सन आ बतियइबऽ त सेज से लेके आईपीएल ले पर बहस क लीहें सन. रेक्शा आम आदमी चलावेला आम आदमी खातिर. ओकरा केहु से जे डर बा त ऊ ह पुलिस के डंडा. ई डंडवा गरीब लोग पर जोर स परेला आ अमीरन के देखि के भाग पराला. कलकाता के ई आमदृश्य ह. हर चौराहा पर रेक्शा वालन पर पुलिस के डंडा झटकारल. कबहुं कवनो कार वाला के पुलिस के हाथे पिटात केहु देखले बा. गलती केहु के होखे सजा भोगी गरीबे.

एकदिन साँझि के बाबा लस्टमानंद आ रामचेला एगो रेक्शावाला के साथ जा बइठले. नवजवान रहे ऊ आ समझदार बुझात रहे. बाबा पूछले, बाबू हो कवना गाँव से आइल बाड़? बड़ा मासूमियत से कहलसि कि, बाबा सब गाँव के रस्ता रोटिए के ओर जाला, राति बेरा कहाँ रहेलऽ? ई पूछला पर कहलस कि, तीस रुपिया रोज कमाए बचावे वाला के कवन घर होई. बस इहे रेक्शा हमार घर, रोजगार, आ सब कुछ ह, रात में कवनो खाली जगह में, खास कर के मेट्रो स्टेशनन के गेट पर घेरावट में सीट उतार के सूति रहेनी सन आ दिन में कवनो बिल्डिंग के छाँह में सुस्ता लेनी सन. कवनो रोड साइड होटल में खा लिहल जाला. बस इहे जिनिगी ह. गाँवे मेहरारू चउका बरतन करेले आ इहवां हम रेक्शा चलावेनी. लोग कहेला कि बहरा कमातारे लेकिन का करऽतारे ई केहु ना जाने. साल छह महीना पर गांवे जानीं त चार छव दिन रहि के चलि आवेनी. अगर बेसी दिन रहेब त भेद खुल जाई आ बेटा मेहरी के इज्जत चल जाई. बाबा, गरीब के जिनगी से बड़हन मजाक आ बड़हन व्यंग्य दुनिया में कुछऊ नइखे. एकरा पर लोग हंसेला आ हमनी का रोएनी सन.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    बहुत नीमनआ सुन्नर रचना .

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