अबकी ढेर दिन बाद संपादक जी से आदेश मिलल कि बतकुच्चन के नया कड़ी भेजल जाव त खुशीओ मिलल आ घबराहटो भइल. काहे कि एने ढेर दिन से कलम उठावे के आदत छूट गइल रहे. अब एकरा के का लुकाईं कि सन्मार्ग में छपल बन्द भइला से मन उदास हो गइल रहे. मन के तोस दिहनी कि हिन्दी के अखबार बतकुच्चन के 208 कड़ी छापे के सम्मान दिहलसि इहे कम रहे का ! अखबार के जिनिगी में समय के अनुशासन मानल बहुते जरुरी होले. समयाभाव का चलते पिछलके बेरा के बांचल कड़ी पठा दिहनी आ अतवार का दिने जब सन्मार्ग देखनी त कलम फेरु जी उठल.
आ एकरा बाद उठल सवाल कि कहाँ से आ कवना बाति पर शुरू कइल जाव. बतकुच्चन के मसाला भोजपुरी लिखनिहारन के भेजल रचनने से मिल जाला, जब देखीलें कि विद्वानो लेखक लोग कुछ अइसन लिख भेजले बा जवना के सुधारल जरुरी बा. अलग बाति बा कि कुछ लिखनिहार एकरा के अपना साहित्यिक आजादी पर मिलल चोट मान लेलें. एही उधेड़बुन में फँसल रहीं, तबले एगो रचना में भोंकल के जिक्र मिल गइल. मकसद रहल भूंकल लिखे आ लिखा गइल भोंकल. अब भोंकला आ भूंकला के फरक त सबके बुझा जाए क चाहीं. कविजी कह सकीलें कि कुछ भूंकलका भोंकला जस लागेला आ उहे लिखल बा.
लिखनिहार जब लिखेलें त उ अपना मन के बात सुनवइहन-पढ़वइहन का सोझा राखल चाहेंले आ जब सम्पादक ओह रचना के देखेला त उ पाठक का नजरिया से देखेला. ओकरा सोझा जिम्मेदारी होला कि पाठक एकरा के सही से समुझ लेव. सम्पादक अपना प्रकाशन के नीति पालन कइला का साथही अपना पाठकन के रुचि के ध्यान राखेला. आ सफल सम्पादक उहे होला जे अपना पाठकन के रुचि-अरुचि के बढ़िया से समुझले होला. बतकुच्चन में बात बहकला के समस्या हमेशा होले आ आजुवो बात बहकिए गइल त लवटत बानीं भूंकल आ भोंकला पर.
भूंके क काम खालि कुकुरे ना करऽ सँ. आदिमियो लोग, आ खास क के नेतवो लोग के महारत होला. ऊ भूंक के सोचेलें कि लोग पर खूब असर डललन जबकि भूंकल कहले जाला ओह तेज आवाज के जवना के कवनो मतलब ना निकले. बाकिर आदमी के भूंकला आ कुकुर के भूंकला में इहे बड़का फरक होला. कुकुर के भूंकल बे मतलब ना होखे. ऊ लोग के चेतावे ला भूंकेला कि कुछ अनजान भा संदेह उपजावे गतिविधि देखे में आवत बा. कुकुरन के कान बहुते तेज होला आ एकरे चलते आन्हर कुकुर हवा बतासो के आवाज सुन के लोग के चेतावल शुरु क देला. भोजपुरी में त कहावते ह कि आन्हर कुकुर बतासे भूंके. अलग बाति बा कि एहिजा कुकुर के कर्तव्यपरायणता के मान नइखे दिहल. आन्हर होखला का बावजूद ऊ भरसक कोशिश करत बा कि आपन जिम्मेदारी सम्हरले रहो. हँ, साहित्यिक अभिव्यंजना में आदमी का बारे में कहल ई बाति सोरहो आना सही बा.
रउरो सभे निश्चिन्त रहीं अगिला बेर से भूंकब ना, कुछ दोसर बात करब.

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कुछ त कहीं......

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