घर सुधरी त जग सुधरी

by | Mar 29, 2021 | 0 comments

  • विजय मिश्र

ओह दिन बाँसडीह जाए के रहल। मोटर साइकिल निकाल के स्टार्ट कइनी त पेट्रोल कम बुझाइल। कुछे दूरी पर पेट्रोल टंकी रहे, उहाँ पहुँचते सामने से एगो लइका हमरा बाइक
के आगे आपन गाड़ी पेसि के तेजिए में ……. देखावत बोलल- ”पचास के दे दऽ।” तेलो वाला पचास रुपया लेके ओके तेल देबे लागल। हमरा कुछ खुनुस त बरल, बाकिर सोचनी कि ओके सामने से हटावे के गरज से तेल वाला ओके पहिले दिहलस। तेल लेके ऊ गाड़ी घुमवलस आ मुँह भरल पान के पीत मारत चल गइल। हम भकुआइल ताकते रहि गइनी, जइसे हमरे से कवनो गलती हो गइल होखे। – ”इहे लाटसाहिया तहके ले डूबी।”
भुनभुनात तेल वाला हमरा ओर ताक के बोलल- ”बाबा अइसन लोग कबो ना सुधरी। बोलीं केतना के दे दीं?”

  • ”सुधरी हो, समय पर सब सुधरि जाला। तू आ हम ठीक रहीं जा बस।” हम दू सौ रुपया आगा बढ़ावत कहनी आ आपन राह पकड़नी। रास्ता में ओह लइका के मनसोखई
    मन में घुमरियात रहे। कहे के त कहा गइल – सब सुधरि जाई, बाकिर कब आ कइसे?

नया पीढ़ी के पसन ना पसन, खान-पान, संग-साथ आ रहन-चाल कुल्हि में, फरक आ गइल बा। सोझहीं उन्हन क अनेति देखियो-सुन के, केहू बोलत-टोकत नइखे। ना कवनो बिचार बा, ना व्यवहार। मनबढ़ूपन आजादी बन्द हो गइल। सोचला में ब्रेक लाग गइल। गाड़ी स्टार्टे ना होखे, किक मारीं तबो ना। आखिर पसीना-पसीना हो गइनी। उहाँ सटले मिस्त्री के दुकान रहे। गाड़ी डगराइके, उहाँ ले गइनी। मिस्त्री से बतवनी त ऊ कहलस, ”रुक जाईं अबे देखतानी।“ एही बीचे दूगो पढ़निहार लइका, जवन सिगरेट
पीअत रहलन सऽ, बोलबाजी कइलन सऽ- ”बबुआ के बिआह में मिलल रहल हा का?”

एक त हमार मन अऊँजाइल रहे आ इन्हन के मजाकिया लहजा में कहल बात सुनि के मुँह से निकल गइल- ”ना एक बबुआ, ई जे तहन लोग सिगरेट खींचऽ ताड़ऽ लोग ईहे सब फजूल पइसा, बचा के हम बाइक खरीदले बानी।”

लइका लोग झेंपल आ सिगरेट फेंक के चप्पल से बुतावत बोलल लोग- ”बाबा, खिसिया गइनी का? मिस्त्रियो हमार गाड़ी एने-ओने देखलस फेरू तेल बन्द क के स्टार्ट कइलस, गाड़ी स्टार्ट हो गइल, बतवलसि ओभर-फ्लो रहल हा। गाड़ी खाड़ करीं त तेल बन्द क दिहल करीं, कवनो दिक्कत ना होई। हमहूँ गाड़ी लेके आगा बढ़ गइनी। कचहरी में कुछ काम रहे। घरे अइनी त चाय पानी का बाद जब सलसन्त भइनी त आजु के बात फेरू मन में घूमे लागल। दू तरह के व्यवहार हम तुलना कइनी- एक तरफ ऊ उदंड लइका पान के पीक लगहीं थुकलस, छींटा परवलसि आ सान से चलता बनल। केहू कुछ बोलल-टोकल ना जइसे थथमा मार गइल होखे। दुसरा तरफ लड़िकन पर हमरा बात के लिहाज आइल आ सिगरेट फेंक के बुता दिहलन स। टोकटोक के असर पड़ल, लिहाज कइलन सऽ। हमरो विसवास बढ़ल कि जब कहीं कुछ गलती लउके उहाँ घर के हर बूढ़ बुजुर्ग, समाज के सब समझदार लोग यदि सही मन से टोकटाक करी त स्थिति में कुछ त सुधार होई। जब घर के गार्जियन अपना परिवार के लड़िकन क ढेर मन बढ़ाई त लड़िका अइसहीं असभ्य आ उद्दंड होत जइहें सऽ। पहिले घर सुधरी, तबे जग सुधरी।

(पाती पत्रिका से साभार)

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(3)


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(4)

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(7)
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(5)

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