बतकुच्चन ‍ – ८१

by | Oct 19, 2012 | 0 comments


जवना दुखे अलगा भइनी तवने मिलल बखरा. कुछ लोग एह कहाउत के दोसरो तरह कहेला कि सास दुखे अलगा भइनी ननद मिलली बखरा. बात एके ह. कवनो जरूरी नइखे कि अलगा भइला का बाद बखेड़ा खतम हो जाउ, एक दोसरा के बखोरल खतम कर देव लोग. अब अन्ना से अरविंद अलगा होखसु भा यूपीए से टीएमके. सभके आपन बखार बा, आपन बखरी बा. बखरा माने हिस्सा होला आ बखरी भा बखार ओह बड़हन गोल पात्र के कहल जाला जवना में पुरनका जमाना में गाँव देहात के लोग अनाज वगैरह राखत रहुवे. सब आपन आपन बखरा अपना बखरी में बटोरे में लागल बा आ एह दौरान बे बखरो के कुछ बखोरे के मिल जाव त ओहू से केहु के मनाही नइखे. जवन आवत बा तवन आवे द.

हिस्सा बखरा के बात निकलल त एगो कहानी मन पड़ गइल. मन पड़ गइल माने मन में ना पड़ल, मन में रहल तवन याद आ गइल. दू भाई के बीच हिस्सा बखरा लागत रहुवे. हर बढ़िया चीझु के छोटका भाई अपना हिस्सा में माँग लेव. होत होत जब बाप के लिहल करजा के बात आइल त कह दिहलस कि सब हमहीं लेम? कुछ तुहुँ त ल! त हिस्सा बखरा मे एह तरह के बात खुब होला कि मीठ मीठ गप्प कड़ुआ कड़ुआ थू. निमनका हमार, बउरका तोहार.

बउरका के बात आइल त बउरहवा याद पड़ गइल. शिव जी जइसन दुलहा के देख गौरा के माई कहे लगली कि अइसन बउरहवा बर से गउरा ना बिअहबो भले गउरा रहीहें कुआर! बाकिर कब के? बेटी त होखबे करेले अनका घर जाए खातिर. आ जब गउरा के उहे बउरहवे पसंद आ गइल होखे त केहु करिए का सकेला. हालांकि बाउर आ बउराह एके जइसन होखेला बाकिर कवनो जरूरी नइखे कि जे बउराह बा से बाउरो होखो. आ बउराह बाउर होखे त होखे, बाउर कबो बउराह ना होला. ऊ हमेशा दोसरा के बउराह बनावे में माहिर होला. आ जब कई गो बाउर मिल जासु त कहल मुश्किल होला के केकरा के बउराह बनावे में लागल बा. दोसरा के बउराह बनवला का साथे साथ आपसो में बउराह बनावे के खेल चलत रहेला. कहनुआ कहत रहसु, बकतुआ बकत रहसु, आ खेल चलत रहेला.

आ खेल खाली खेले के ना कहल जाव. हर तरह के खेल खेले कहाला. अब एह खेल आ खेल में कवन खेल बा से त धोनी लेखा धुरंधरे बता सकेले, जिनका खेल का सोझा ढेरे लोग हार मान लिहले बा. कुछ खेल खेल के मैदान में खेलल जाला त कुछ राजनीति के त कुछ कंपनियन का बोर्ड में. हर जगह खेल के खेलाड़ी एही में लागल रहेलें कि कइसे दोसरा के चित कइल जाव बिना आपन सांस तूड़ले. साल चउदह जस जस नियरात जात बा तस तस राजनीति के खेल चोख होखल जात बा. अलग बात बा कि एह चोख धार से कटे के बस जनता के बा. छूरी लउकी पर गिरे भा लउकी छूरी पर, कटे के त लउके के बा. ठीक ओही तरह कि चुनाव में केहु जीते, हारे के त बस जनता के बा. जनता के बखरा में त इहे मिलल बा एह पर ऊ बखेरो करे त कतना आ कब ले? ओकरा त बखोरात रहे के बा आ नेतवन के बखरी भरात रहे के बा.

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(4)

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(5)

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