अपना मूल के जनला समझला के माने
– डा. अशोक द्विवेदी गँवई लोक में पलल-बढ़ल मनई, अगर तनिको संवेदनशील होई आ हृदय-संबाद के मरम बूझे वाला होई, त अपना लोक के स्वर का नेह-नाता आ हिरऊ -भाव के समझ लेई. आज काकी का मुँहें एगो जानल-सुनल पुरान गीत सुनत खा हम एगो दोसरे लोक में पहुँच गउंवीं.पूरा पढ़ीं…