आनन्द संधिदूत के दू गो कविता
(एक) फूल के, फर के, टपक-चू के निझा जाए के बा.के रहल, कइसन रहल एहिजे बुझा जाए के बा. फूल के पचकत तपन बन के जुड़ा जाए के बाए दिया…
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(एक) फूल के, फर के, टपक-चू के निझा जाए के बा.के रहल, कइसन रहल एहिजे बुझा जाए के बा. फूल के पचकत तपन बन के जुड़ा जाए के बाए दिया…
– आनन्द संधिदूत जब आँगन का बीच में डँड़वार आ खेत का बीच में सड़क निकललि त खेत क बगड़ी आँगन का गउरइया किहें आके कहलसि कि लऽ ए बहिनी…
आनन्द संधिदूत एही दीयर में बा हमरो खेत क एगो छोट-मोट टुकड़ा जवन हम देखले नइखीं। ओही खेत क गोजई-रहिला जब हमरा आँगन में गिरे त हमार माई ओइसहीं खुस…