सब दारू पी गइल
– लव कान्त सिंह “लव” फाटल रहे गुदरा-गुदरी एक्के बेर में सी गइल मार मुस – पियना के सब दारु पी गइल । दरोगा जी के धाव भइल गोड़ में…
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– लव कान्त सिंह “लव” फाटल रहे गुदरा-गुदरी एक्के बेर में सी गइल मार मुस – पियना के सब दारु पी गइल । दरोगा जी के धाव भइल गोड़ में…
– लव कान्त सिंह “लव” कुछो अब सोहाते नइखे, का लिखीं बुझाते नइखे। नेता कोई गद्दार लिखीं, डाकू के सरदार लिखीं, चोर के पहरेदार लिखीं, कि गरीब के अलचार लिखीं,…
– लव कान्त सिंह फगुआ के शुरू हो गइल रहे चकल्लस ऊ हमरा तरफ देखलस या कहलस भइया जी हम तहरा के रंग लगायेम हम कहनी, ओसे पहिले भाग जाएम।…
– लव कान्त सिंह बा अन्हरिया कबो त अंजोरिया कबो जिनगी में घाम बा त बदरिया कबो प्रेम रोकला से रुकी ना दुनिया से अब होला गोर से भी छोट…
– लव कान्त सिंह दरद हिया के छुपा रहल बानी लोर पोंछ के मुस्का रहल बानी. कांट के बगिया में हमके फेंकल केहू बनके फूल ओजा भी फुला रहल बानी.…
इन्टरनेट आ तकनीक के जमाना में रंगमंच आ रंगकर्म ओहू में भोजपुरी के रंगमंच के जिन्दा राखल भी पहाड़ चीर के रास्ता बनवला से तनिको कम नइखे. दिल्ली में नाटक…