डॉ. कमल किशोर सिंह के दू गो कविता
– डॉ. कमल किशोर सिंह (1) पाला साल बीतते फेरु से पडे़ लागल जाड़ा. लागेला हमरा के मारी देलस पाला. मन घास पात अस मऊरा कठुआ जाला रूई आ धुईं…
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– डॉ. कमल किशोर सिंह (1) पाला साल बीतते फेरु से पडे़ लागल जाड़ा. लागेला हमरा के मारी देलस पाला. मन घास पात अस मऊरा कठुआ जाला रूई आ धुईं…
– डॉ. कमल किशोर सिंह एक साल अउर सरक गइल, कुछ छाप आपन छोडि के. भण्डार भरि के कुछ लोगन के, बहुतो के कमर के तोड़ी के. प्रकोप परलय के…
– डा. कमल किशोर सिंह हम रटीला रोजे ‘हिपोक्रेटिस’ हृदय में, धरि ‘धनवंतरी’ ध्यान, हम रटी ला रोजे रोगान शेषान, रोगान शेषान. छछनावे, तडपावे, फेर दुहि लेला प्राण, बचल ना…