गज़ल – जिंदगी रेत जइसन पियासल बिया

डॉ. हरेश्वर राय सियासी छेनी से कालिमा तरासल बिया I चांदनी हमरा घर से निकासल बिया II भोर के आँख आदित डूबल बा धुंध में I साँझ बेवा के मांग…

गज़ल : उरुवा लिखीं, उजबक लिखीं कि बेहया लिखीं

– डा0 अशोक द्विवेदी एह बेशरम-अनेति पर अउँजा के, का लिखीं उरुवा लिखीं, उजबक लिखीं कि बेहया लिखीं लंपट आ नीच लोग बा इहवाँ गिरोहबन्द सोझबक शरीफ के बा बहुत…

गज़ल

– डा0 अशोक द्विवेदी नेह-छोह रस-पागल बोली उड़ल गाँव के हँसी-ठिठोली. घर- घर मंगल बाँटे वाली कहाँ गइल चिरइन के बोली. सुधियन में अजिया उभरेली जतने मयगर, ओतने भोली. दइब…

गज़ल

– शशि प्रेमदेव जेकरा पर इलजाम रहल कि गाँछी इहे उजरले बा! फल का आस में सबसे पहिले ऊहे फाँड़ पसरले बा! दूर से ऊ अँखियन के एतना रसगर लगल,…

गज़ल

– मिथिलेश गहमरी जरूर चाँदनी बिहँसी सुतार होखे दीं, उदास चान के गरहन से पार होखे दीं. बन्हाई काँहे ना जिनगी क पीर मूट्ठी में, हिया के पीर त अउरी…

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