पारंपरिक निरगुन
– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’ (1) के रे जनम दिहलें, के रे करम लिखलें कवन राजा आगम जनावेलें हो राम ।। ब्रम्हाजी जनम दिहलें, उहे रे करम लिखलें, जम राजा…
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– डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’ (1) के रे जनम दिहलें, के रे करम लिखलें कवन राजा आगम जनावेलें हो राम ।। ब्रम्हाजी जनम दिहलें, उहे रे करम लिखलें, जम राजा…