ढील देके चना के झाड़ प चढ़ावल – बतंगड़ 73

– ओ. पी. सिंह एह घरी देश के सगरी खुरचाली एकजुट होखे लागल बाड़ें काहें कि ओहनी के मालूम हो गइल बा कि अगर एकवटब सँ ना त बिला जाए…

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