पाप के कमाई
– ओम जी ‘प्रकाश’ रंडी, पतुरिआ का उपर फूंकाई! चोरी क पइसा त चोरी में जाई!! तिकड़म भिड़ा लिहलऽ, धन त कमा लिहलऽ मड़ई का जगहा तूँ कोठी उठा लिहलऽ…
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– ओम जी ‘प्रकाश’ रंडी, पतुरिआ का उपर फूंकाई! चोरी क पइसा त चोरी में जाई!! तिकड़म भिड़ा लिहलऽ, धन त कमा लिहलऽ मड़ई का जगहा तूँ कोठी उठा लिहलऽ…
– शशि प्रेमदेव हे बाहुबली! बँहिआ में त हमहन के भी ओतने दम बा! बाकिर तहरा पाले लाठी, भाला, बनूखि, गोली, बम बा!! तहरे चरचा बा घरे घरे बाजे सगरो…
– ओ.पी. अमृतांशु चिरई-चुरंगिया के होई गइलें शोर ! भइल भोर, हे आदित् देव लागिला गोड़ ! हाथ जोड़ , हे आदित् देव लागिला गोड़ ! देर भइल पनिया में…
– अभयकृष्ण त्रिपाठी खइले रहीं कसम अब कलम ना उठाएब, सबसे पहिले मन के अन्धकार मिटाएब. दिन बीतल युग बीतल बीत गइल हर काल, मोहमाया के चक्रव्यूह के नाही टूटल…
– डा॰अशोक द्विवेदी कविता का बारे में साहित्य शास्त्र के आचार्य लोगन के कहनाम बा कि कविता शब्द-अर्थ के आपुसी तनाव, संगति आ सुघराई से भरल अभिव्यक्ति ह. कवि अपना…
काल्हु अतवार १४ अक्टूबर का दिने बलिया के श्रीरामविहार कालोनी स्थित “पाती” पत्रिका आ विश्व भोजपुरी सम्मेलन के बलिया कार्यालय पर एगो विचार आ कवि गोष्ठी भइल. एह गोष्ठी में…
– नीमन सिंह दिल में गुबार एतना बा कि जहिया निकाल दी एह दुनिया के दानव के ना लागी पता हो जइहें खाक सब जल जाई. रही ना आतंक…
– डा॰अशोक द्विवेदी तुहीं बतावऽ जागी कबलें केकरा खातिर रात-रात भर? खाए के बा अखरा रोटी सूते के बा घास-पात पर! तुहीं बतावऽ जागी कबलें केकरा खातिर रात-रात भर? अपना…
(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से आखिरी प्रस्तुति) – डा॰अशोक द्विवेदी धुन से सुनगुन मिलल बा भँवरन के रंग सातों खिलल तितलियन के लौट आइल चहक, चिरइयन के!…
(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से – 23वी प्रस्तुति) – रिपुसूदन श्रीवास्तव जिन्दगी हऽ कि रूई के बादर हवे, एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे. जवना घर में…
– डॉ.कमल किशोर सिंह चिकित्सक के चइता रामा कहेलें कन्हैया सुनहो प्यारी राधिका हो रामा हमरा के – मक्खन अब ना खियाव हो रामा हमरा के —— रामा खाई के…