विराम-चिह्न के आत्म कहानी
सुनीं उनहीं क जुबानी

प्रभाकर पाण्डेय गोपालपुरिया

हम विराम-चिह्न हईं. कुछ ग्यानी लोग हमके विरामचिन्ह चाहे विरामो बोलेला बाकिर हमरा कवनो दुख नइखे, उलटे खुशी बा. हाँ, एगो बाति हम बता दीं; हमार कोशिश रहेला की लिखित वाक्यन आदि में हम कवनो न कवनो रूप से हाजिर रहीं.

हम अपने मुँहे मियाँ मिट्ठू नइखीं बनत बाकिर एक दिन हमार गुरुजी बतावत रहनी की दुनिया में जवन भी चीजु, संकल्पना आदि बानि कुल्हि; सबके आपन-आपन महत्व बा. गुरुजी के ई बाति सुनि के हमरा जिग्यासा भइल अउर हम गुरुजी से पुछि बइठनि, 'गुरुजी हमार उपयोगिता का बा?' गुरुजी मुस्कुरइनी अउरी कहनी, 'विराम! बेटवा विराम! तूँ त बहुते काम के बाड़ऽ. तहरी गैरहाजिरी में त अर्थ के अनर्थे हो जाई. अउरी वाक्यन में संदिग्धतो आ जाई.'

हमरा बहुते खुशी भइल अउरी हम गुरुजी से चिरउरी कइनी कि तनी हमरी परिचय क साथे-साथे हमरी उपयोगितो पर प्रकाश डाले क किरीपा करीं. ओकरी बाद गुरुजी हमके जवन कुछ बतवनीं, ऊ सब हम इहाँ बयान करतानी. कान देईं सभें.

लिखित भाषा क स्पष्टता, अर्थपूर्णता, प्रभावपूर्णता आदि में हमार जोगदान अविस्मरनीय अउरी अमूल्य बा. आईं सभें, एगो उदाहरन क सहायता से समझावत बानी -

पढ़ऽ, मति लिखऽ. एह वाक्य से ई साफ बा की पढ़े खातिर कहल जा रहल बा.

अब एह वाक्य में जरा हमरी (विराम चिन्ह) स्थान में बदलाव क के देखीं -

पढ़ऽ मति, लिखऽ. एह वाक्य में लिखे खातिर कहल जा रहल बा.

देखनीं हमार कमाल. इहवाँ त खाली हमार जगहिए बदलि देहले से वाक्य के उलटा अर्थ निकले लागल. आईं, अब हम आप सबके अपनी रूपन के परिचय करावतानी अउरी उहो उदाहरन रूपी चाय की चुस्की क साथे.

1. पूर्ण विराम (.) :― नामही से हम स्पष्ट बानी. वाक्य पूरा होतही हम हाजिर हो जानी. जइसे― हमार नाव विराम हऽ. हम अविराम के छोट भाई हईं.

2. अर्द्ध विराम (;) :― पूरा नइखीं हम. हँ महाराज, वाक्य क बीचही में हम शोभायमान हो जानीं. जइसे― जब भी मोहन आवेने; तू हूँ आ जालऽ.

3. अल्प विराम (,) :― जब वाक्य आदि में एक ही तरह क कई चीजन के सूचित करे वाला शब्द आवेने; हमरा आपन हाजिरी दरज करावे के पड़ेला. जइसे― राम, मोहन अउरी रहीम दोस्त हऽ लोग.

4. उपविराम (:) :― मूल बाति लिखे से पहिले अगर हमके लगाइबि त हम गदगद हो जाइबि. जइसे― राम तीनि गो हउअन : श्रीराम, परशुराम अउरी बलराम.

5. प्रश्नवाचक चिह्न (?) :― जबाब के अपेछा करीं अउरी हम ना रहीं; ई कइसे हो सकेला? जइसे― तूँ कहाँ जा तारऽ?

6. विस्मयसूचक चिह्न (!) :― वाक्य विस्मय से भरल होखे त हमार हाजिरी लगा देईं. जइसे― अरे ! तूँ कब अइलऽ हऽ?

7. रेखिका चिह्न (―) :― शब्द, वाक्यांश आदि क बाद हमके लगाके ओकर परिभाषा चाहें उपयोगिता आदि चरितार्थ क देईं. जइसे― जइसे की बाद लागल बानी.

8. संयोजक चिह्न (-) :― आपन भाई रेखिका चिह्न जइसने हमरो रूप बा, बाकिर बानी उनका आधा. हम अभिन्न शब्दन क बीच में आके ओ लोगन क प्रेम बढ़ा देनी. जइसे― माता-पिता, भाई-बहन.

9. विवरण चिह्न (:―) :― बिबरन लिखे से पहिले हमके लगा देईं. जइसे हमरी रूपन के बिबरन लिखत समय लगवले बानी.

10. कोष्ठक चिह्न (()) :― हम अपनी मुहें में वही शब्द चाहे शब्दन के जगहि देनी जवने के संबंध हमरा से पहिले आइल शब्द चाहें शब्दन से रहेला. जइसे― ऊ मुम्बई (महाराष्ट्र) में रहेला.

11. उद्धरण चिह्न ("" / ' ' ) :― हम मूल शब्द चाहे शब्दन के घेरि के ओकरी उपयोगिता सबकी नजर में ले आवेनी. जइसे― १. 'माँ मन्थरा' प्रभाकर क द्वारा लिखल गइल बा. राम कहने, "आम मीठ बा."

12. पुनरुक्तिसूचक चिह्न (") :― हमार परयोग कइले से एक ही शब्द के एक क नीचे एक कई बार लिखले से बचल जा सकेला. जइसे― १. श्री लालू यादव. २. " लल्लू सिंह.

13. लाघव चिह्न (॰) :― अगर शब्द के संछेप में लिखल चाहऽ तानी त हमार उपयोग करीं. जइसे― १. भा॰प्रौ॰सं॰ (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) २. पं॰ मदन मोहन मालवीय (पं॰ = पंडित) .

14. विकारी चिह्न (ऽ) :― भोजपुरी में विकारी चिह्न के भरपूर प्रतोग होला. कई बेर जरूरी, त कई बेर गैरजरूरी. एकर उद्देश्य ई बतावल होला कि एह चिह्न से ठीक पहिले वाला स्वर में दीर्घता बढ़ जाई. जइसे कि चाहऽ में ह के साथ जुड़ल अ दीर्घ हो जाई. दीर्घ अ भोजपुरी के खासियत हऽ आ एकर महत्व दोसर भाषा वाला ना समुझ पइहें.

आप सबके धन्यवाद ग्यापित करत, हम विरामचिह्न अपनी बानी के विराम दे तानी.


आखिर में एगो आउर बात. पूर्ण विराम खातिर कवन चिह्न व्यवहार कइल जाव, एहमें तनी मतभेद बा भाषा शास्त्रियन में. कुछ लोग संस्कृत से आइल पूर्ण विराम चिह्न | के प्रयोग करेला त कुछ लोग अंग्रेजी से आइल बिन्दु चिह्न के. अँजोरिया पर बिन्दु चिह्न के प्रयोग कइल जाला काहे कि बाकी सगरी विराम चिह्न अंग्रेजिये से लिहल गइल बा त पूर्ण विराम का साथे विभेद काहे?
संपादक, अँजोरिया.


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