भोजपुरी लस्टम पस्टम

28 Jan 2010

मजबूरी में किनाइये गइल कार

- जयन्ती पाण्डेय

बाबा लस्टमानंद का दुआरे मोटर कार देखि के रामचेला त चकरा गइले. अरे ई बाबा के का भइल कि काल्हु ले दाल के झोंखत रहले आज अचानक कार कीन लिहले. जा के ऊ बाबा से सवचले, अरे ई कार कतना में परलि हिअ ? गइल रहलऽ काकी आ लईकन के ले के मकर संक्रान्त के बाजार करे आ अचानक कार ले के चलि अइलऽ ?

बाबा लमहर साँस ले के कहले, भाई रामचेला, आज के दुनिया किस्मतमय हो गइल बा आ किस्मत पर केहू के मर्जी ना चले. तहरा का चाहीं कि ना, ई केहू अउर तय कर रहल बा. तूं मजबूर बाड़ऽ. जेब में फूटल कौड़ी नइखे, बाकिर बाजार में दोकानदार तहरा के सब कुछ बेचे पर आमादा बा. तूं बांचि के कहाँ जइबऽ ? बाजार के इहे रवैया का चलते परिवार के इच्छा आसमान छुए लागल बाड़ी सन. ओह दिन संक्रान्त के बाजार करे गइल रहीं. धर्मपत्नी कार कीने के ठान दिहली. हम कहनी, भाई पइसा कहाँ से आई ? सेल्समैन हँसे लागल. कहे लागल, अरे सब आ जायेगा. आप बस ले जाईं. हम परेशान, बाकिर देबे वाला के कवनो परेशानी ना. बेचेवाला कहलस, अरे चाचीजी कहऽतारी, लइका कहऽतारे सँ, सब के मन मत तूरीँ. काकी जी त साक्षात देवी हईं आ बच्चा त भगवाने के रूप ह लोग. आप भला ऊ लोग के दिल कइसे दुखा सकीले. उनकर बात सुन के हमार त माथा घूम गइल. मेहरारू हमार ह, कबही हम चिन्ता ना कइनी. लइकनों का बारे में उहे सोच रहल बाड़े. अरे लइका हमार हउवन सँ. हम तय करेब कि ओकनी के का चाहीं, आ का ना चाहीं. बाकिर ना ! ऊ बतावत बाड़े कि हमरा लइकन के का चाहीं. हम दूनों पाकिट दुकानदार का सोझा खाली क दिहनी. बाकिर ऊ सुने तब न. ऊ कहले, कवनो बात ना, हंड्रेड परसेंट फाइनेन्स करवा देब. ऊ चीजवे नइखन बेचत, दार्शनिको रहले. ऊ आज का हाल पर बाकायदा प्रवचन दे दिहलें, अरे ले जाईं भइया. खाली आपही के आर्थिक स्थिति खराब नइखे. आर्थिक हालात त पूरा दुनिया के खराब बा. आप आपन बात करत बानी, अमेरिका के बात लीं. भइया, जे पूरा दुनिया पर राज करत रहे, आजु लोग का सामने हाथ पसरले खाड़ बा. बाकिर का उहवाँ लोग जिअत नइखे ? आजुवो लोग मजे से जी रहल बा. खूब खा पी रहल बा. भाभी जी के अतना इच्छा बा कार लेवे के, त लेइये लीं.

अब मेहरारूवन के आपन मर्द छोड़ के सारी दुनिया के बात सही लागेला. हमरा मेहरारूओ के बुझाइल जे कार से जरूरी दोसर कवनो चीज नइखे. फेर बात पेट्रोल पर आ अटकल. हम समुझवनी कि कारलिहल कवनो बड़ बात नइखे बाकिर पेट्रोल आ रखरखाव में घर के बजट गड़बड़ा जाई. बीबी चुप हो गइली बाकिर अब छोटका बेटवा फरमाइश कर दिहलस. फेर का रहे. दुकानदार त पाछा पड़ गइल. मेहरारू तुरते भावुक हो गइली, साँच कहऽतारऽ भइया. ई त कबहीं सोचबे ना करस. हम का करतीं. पुछनीं कि किश्त के का होई ? जवाब मिलल, किश्तो के समय बढ़वा देहब. एकदम कम बोझ पड़ी. अरे किश्त देबे वाला हम थोड़े हईं. सब भगवान देला. उनका मर्जी का बिना आप गाड़ी ले सकीलें का ? जे चोंच दिहले बा से चुग्गो दीहि. जे गाड़ी दिअवावता ऊ किश्तो के जोगाड़ करी. अब का करतीं, लेबही के पड़ल. आदमीओ कहवां ले संघर्ष करी ? आज किश्त के हरियरी देखावल जा ता. परिवारो का करे. ऊ कागज कलम ले के बइठल बा. रोज नया नया गणोत लगावल जा ता. तनखाह में से एतना पइसा किश्त में गइल त बाकी में खरचा चलिये जाई.कइसहू गुजारा कर लिहल जाई. दु हजार रुपिया के त बात बा. बथानी का पीछा वाला जमीनिया बेंच दिहल जाई, कुछ खरचे कम कर दिआई. जान जा रामचेला, अब हम किस्मत वाला जो गइल बानी.