अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

 

परलय काल

माया के फेरा में प्रानी, नित नित करे बवाल,
पुण्य धरम सब भूल गईल बा, पापी हो गईल काल।
पापी हो गईल काल, काल में बचल बा एक सवाल,
सवाल यहि अब आगे का बा, कइसे सुधरी ईऽ मायाजाल।
कहे अभय कविराय कि अब तऽ हो गईल जी के जंजाल,
करम जुटाईं आपन सबे कोई, अब तऽ आई परलय काल।।


जिनगी सयान हो गईल

जिनगी सयान हो गईल जीना मोहाल हो गईल.......

रक्षक ही भक्षक बा अब तऽ कहना ईऽ जंजाल हो गईल,
परिवर्तन युग के नारा बा पर हमरा संग बवाल हो गईल।
कहलीं जब जुरमी के लेखा जिनगी एक सवाल हो गईल,
प्रेम प्यार के पाठ पढ़ावल सबसे बड़ा कमाल हो गईल ।।
जिनगी सयान हो गईल....................

आपन स्वारथ मिटावे खातिर अभिनेता किसान हो गईल,
संयासिन के ठाठ के आगे राजा रंक समान हो गईल।
माई बाबू के बदला अब कुकुर घुमावल आसान हो गईल,
भ्रष्टाचार के वैशाखी ले के मेरा भारत महान हो गईल।।
जिनगी सयान हो गईल....................

बाप न मारे मेंढ़की अऊर बेटा तीरंदाज हो गईल,
संस्कारी लोगन के आगे मुजरिम प्रधान समाज हो गईल।
जुरम करत पकड़ाते नेताजी के तबीयत नासाज हो गईल,
देखलवनी जब दुनिया के ऐना सब केहु नाराज हो गईल।।
जिनगी सयान हो गईल....................

जिनगी सयान हो गईल जीना मोहाल हो गईल.......


कलयुगी माया के महिमा

कलयुगी माया के महिमा से सारी दुनिया दबाईल बा,
का ज्ञानी का अज्ञानी सब एहि माया में अझुराईल बा।
पढ़ब लिखब होखब नवाब कऽ नारा दुनिया से भुलाईल बा,
अब तऽ गोली तमंचा में ही दुनिया के अर्थ समाईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

नेहरु गाँधी के आदर्श के नारा शिक्षक ही भुलाईल बा,
डाकू गु्ण्डन के सम्मान के खातिर विद्यापीठ अघाईल बा।
जेकर कउनो मान ही नइखे ओकरे मान मनाईल बा,
रिश्वत खाके भी नेताजी के बत्तीसा खीस निपोराईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

प्रेम प्यार के फेरा में अब तऽ बिटिया से आँख लड़ाइल बा,
सजनी खातिर माई काटत जरको ना लोर चुआईल बा।
ईऽ कहनी तऽ अइसन बाटे खुद के आँख देखाईल बा,
का सोचीं हम एकरा आगे जब एहि से मनवा पटाईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

अईसन भी नईखे बबुआ लोगिन दुनिया से प्रेम मिटाईल बा,
विध्वसं के बाद निर्माण भी होखी ई सपना देखाईल बा।
पूछब ऊपर नारायण से कि ई खेल से केकर दिल बहलाईल बा,
बन्द कर दीं अब कलयुग के खेला रऊए नाक कटाइल बा।।
कलयुगी माया के महिमा.........


कलयुगी माया के महिमा

कलयुगी माया के महिमा से सारी दुनिया दबाईल बा,
का ज्ञानी का अज्ञानी सब एहि माया में अझुराईल बा।
पढ़ब लिखब होखब नवाब कऽ नारा दुनिया से भुलाईल बा,
अब तऽ गोली तमंचा में ही दुनिया के अर्थ समाईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

नेहरु गाँधी के आदर्श के नारा शिक्षक ही भुलाईल बा,
डाकू गु्ण्डन के सम्मान के खातिर विद्यापीठ अघाईल बा।
जेकर कउनो मान ही नइखे ओकरे मान मनाईल बा,
रिश्वत खाके भी नेताजी के बत्तीसा खीस निपोराईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

प्रेम प्यार के फेरा में अब तऽ बिटिया से आँख लड़ाइल बा,
सजनी खातिर माई काटत जरको ना लोर चुआईल बा।
ईऽ कहनी तऽ अइसन बाटे खुद के आँख देखाईल बा,
का सोचीं हम एकरा आगे जब एहि से मनवा पटाईल बा।
कलयुगी माया के महिमा.........

अईसन भी नईखे बबुआ लोगिन दुनिया से प्रेम मिटाईल बा,
विध्वसं के बाद निर्माण भी होखी ई सपना देखाईल बा।
पूछब ऊपर नारायण से कि ई खेल से केकर दिल बहलाईल बा,
बन्द कर दीं अब कलयुग के खेला रऊए नाक कटाइल बा।।
कलयुगी माया के महिमा.........


कुर्सी के महिमा

कुर्सी के महिमा ए भईया देखाऽ जबरदस्त,
जे पाये ऊ मस्त हो रामा जे ना पाये त्रस्त..

सबसे पहिले बुढ़वा कुर्सी कहलाए ऊऽ प्रेसीडेन्ट,
बुढ़वन खातिर फिक्स ए भईया एकर एग्रीमेन्ट.
ना कउनो विवाद भईल बा ना बदनामी के चर्चा,
नम्बर वन के कुर्सी ईऽ बा जाने बऽच्चा बऽच्चा.
ई कुर्सी के छोड़ के बाकी कुर्सी बाऽ मदमस्त,
जे पाये ऊ मस्त हो रामा जे ना पाये त्रस्त..

पीएम सीएम सांसद भईया जाने सब कुर्सी के महिमा,
कुर्सी के पावे खातिर ख्याल न रऽखे कउनो गरिमा.
प्रजातन्त्र के नारा दे के कुर्सी के दू फाड़ कईऽल बा,
का साधू का मुजरिम भईया सबकर इऽहै जात बनल बा.
सत्ता के कुर्सी के खातिर मुजरिम बन गईऽल सरपरस्त,
जे पाये ऊ मस्त हो रामा जे ना पाये त्रस्त..

कबहु रहऽल इन्द्र के कुर्सी बात बात पर डोले लागे,
जान जाये पर कुर्सी ना देब उनकर मनवा बोले लागे.
हमके तऽ ईऽ लागत भईया आपन आफत थोपे खातिर,
पृथ्वीलोक के रोग के पीछे देवलोक के ईऽ चाल बा शातिर.
अब ना डोले इन्द्र के कुर्सी षड़यन्त्र हो गईऽल जबरदस्त.
जे पाये ऊ मस्त हो रामा जे ना पाये त्रस्त..

कुर्सी के महिमा ए भईया देखाऽ जबरदस्त,
जे पाये ऊ मस्त हो रामा जे ना पाये त्रस्त..


बाबू हमार बियाह कईऽले

हमार अज्ञान मिटावे खातिर बाबू हमार बियाह कईऽले,
ज्ञान के चक्षु खुलते भईया हमरा लाइफ से बाहर गईऽले.

माई के सेवा हम कईऽलीं अऊऽर बाबू के गोड़ दबवलीं,
कबहुँ न ऊँचा बोली बोललीं ईऽ सब हम अज्ञान में कइऽलीं.
हमरा ज्ञान बढ़ावे खातिर बाबू एक प्रयोजन कईऽले,
सबकर राय मंत्रणा ले के हमरा खातिर लऽईकी देखले.
हमार अज्ञान मिटावे खातिर बाबू हमार बियाह कईऽले.

पत्नी आईल सुन्दर गोरी हमके बहुत बहुत ही भाईऽल,
हमरा ज्ञान के सीमा जनले मन ही मन बहुत पछताईऽल.
लोक लाज के शरम में आके पहिले तऽ चुपचाप रह गईऽल,
ओकरा जरिये सरऊऽ फिर हमरा मन पैठ जऽमईऽले.
हमार अज्ञान मिटावे खातिर बाबू हमार बियाह कईऽले.

मेहरारु के रंग में आके हमरे ज्ञान के चक्षु खुल गईऽल,
माई बाबू गौड़ भये अऊर मेहरारु सर्वोपरि हो गईऽल.
माई के सेवा के बदले मेहरारु कऽऽ नशा छा गईऽल,
सरऊ के चक्कर में आके बाबु अपना गोड़ से गईऽले.
हमार अज्ञान मिटावे खातिर बाबू हमार बियाह कईऽले.

माई बाबू से छुट्टी खातिर जल्दी से सब बियाह कऽईले,
का रखल बा माई बाबू में पत्नी के सम्पूर्ण समझऽले.
पीछे की छोड़ आगे की सुध ले नारा ई मन में तू जमईऽले,
बिटवा कबहु न पैदा करिऽहे वरना तू भी काम से गईऽले.
हमार अज्ञान मिटावे खातिर बाबू हमार बियाह कईऽले.


मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह

ना कुछ कहिऽह ना कुछ बोलिऽह मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह.

सबके फिकर बा आपन आपन न्याय भईल अब सपना भईया,
गाँधी के सिद्धान्त गईल बा हिंसा ईंहा के राज भईल बा.
देख के ईऽ सब आँख ही मुदिंऽह मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह.

भारत माता रोअत बाड़ी कोख के अपना कोसत बाड़ी,
इक दुसरे के रोजी झपटल अन्याय के रथ पर भटकल.
दिल ही दिल में तू रखिऽह मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह.

अपने से दूबर के पटकल शान देखावत कभी ना अटकल,
मार काट तऽ अइसे कईऽलस इंतहान के परचा दिहलस.
करम के अपना तू रोईऽह मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह.

ना कुछ कहिऽह ना कुछ बोलिऽह मनवा तू चुपचाप ही रहिऽह.


बचवन देश गँवइऽऽह मत

बचवन देश गँवईऽऽह मत दुश्मन से घबड़ईऽऽह मत.

सब देशन से भारत अच्छा जेकर करे हिमालय रक्षा,
सागर करेला एकर रखवारी ललचाएला दुनिया सारी.
एके तू बिसरईऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

इहँवे भइलन कृष्ण कन्हैया आज भी बाटे गोकुल गइया,
इहँवे पर राम अवतरले जे रावण के मान घटवले.
इनके कलंक लगइऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

अनेक योद्धा अनेक त्यागी अनेक योगी अऊर बैरागी,
परोपकारी अनेक दानी जेकर इहँवे बाऽऽ निशानी.
इनसे मुहँ चोरईऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

जिम्मेदारी अब तोहार बा भारत माता के पुकार बा,
दुश्मन चारो ओर अड़ल बा भारत भेदियन से भरल बा.
इनसे तनिक डेरईऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

कपट से कपटी पाकी अइलस खाके मात लजाई गईलस,
भुट्टो के तऽ यादे होई ढाका में जे गुजरल होई.
आपन शान घटईऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

आज नीति डाँवाडोल बा स्वार्थ रूपी विष घोलल बा,
तबाही के पीड़ा भईया भोगे तोहार बाबा मइऽऽया.
तूऽऽ एके अपनईऽऽ मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

बड़कन के कुछ गलती होई बबुअन माख न रखिऽह कोई,
जैसे खाके आम के गुदा गुठली कर दिहल जाव जुदा.
सच्चाई झूठलईऽऽह मत बचवन देश गँवईऽऽह मत.

बचवन देश गँवईऽऽह मत दुश्मन से घबड़ईऽऽह मत.


धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी

धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी पावन गंगा के पानी
जेकरा दर्शन के तरसे जग के सगरो प्राणी प्राणी.

मूरख पंडित साधू अऊर ग्यानी राजा रंक अऊर अभिमानी,
केहु नाही बा अइसन भईया जे काशीके महिमा ना जानी.
पाप से मुक्ति पावे खातिर हर केहु आवेला काशी,
उनके बाऽ विश्वास कि जालन स्वर्ग में काशी के बाशी.
धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी पावन गंगा के पानी.

काशी के महिमा कारण ग्रहन में आला अईसन भीर,
तिल धरे भर के जगह नाऽ बाचल गंगाजी के तीर.
बुढ़ा बच्चा अऊर जवान भेद भाव के छोड़ निशान,
दौड़ लगावे अइसे जइसे मिल गइले इनके भगवान .
धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी पावन गंगा के पानी .

भीड़ भी लऽउके अइसन जइसे बाढ़ के उमड़ल पानी,
सच्ची सेवा के भावना में भूल गइल सब कुछ प्रानी.
नैया गंगाजी में दौड़ल लेके यात्री जन के पूरा भार,
जनसेवक उनके सेवा खातिर हरदम बा पूरा तैयार .
धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी पावन गंगा के पानी.

घाट घाट पर शोर मचल सुन लीं साधू संतन के बोली,
दान धरम के महिमा सुना के उनकर भर गइल झोली.
गंगा किनारे और सड़क पर लागल ड्यूटि पुलिस के भाई,
इधर से आके उधर से जा जा जनता के बा रहल समझाई .
धन्य धन्य काशी कीऽ नगरी पावन गंगा के पानी .