अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

 

केहू जल के बुझाला केहू....

हमरा कहला में भी एगो बात बा..
मानी ना मानी दुनिया एगो बिसात बा..
हमार खुशी देख के उनकर जियरा जरात बा..
उनकरा का मालूम कि हमार का का पिरात बा.
इधर दिन निकलेला उधर रात के अंधियारी.
उनकर बेवफाई पर हमार कलेजा तारतार होला.
दिया और फतिंगा में फर्क बा सिर्फ इतना..
केहू जल के बुझाला केहू बूझ के जराला..