अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

 

वारिस खातिर लइका चाहीं

वारिस खातिर लइका चाहीं मचल बा हाहाकार.
कोखी से ही लइकी साथे हो रहल बा भेदाचार.
हो रहल बा भेदाचार कि सुन लीं लइकन के करनी.
एगुड़े कोठरी में पेटवा काट के चार चार के पलनी.
कहे अभय कविराय कि अब आईल बा जमाना.
चार चार कोठरी के किला में भी ना माँ बाप के ठिकाना.
बोई ब पेड़ बबूल के त आम कान्हा से पई ब.
मार के लइकी के तू लइका कहाँ ले जई ब.