अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

 

ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.

ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.
ईऽ आपन दिल हव जइसन चाहेब हो जाई.

बुजुर्गन के नसीहत भुलाईब जिन्दगी फूँक हो जाई.
मेहरारु के बकबकाईल भी कोयल के कूक हो जाई.
जिन्दगी रहे खातिर खाईब दू रोटी में पेट भर जाई.
किसमतिया के कोसत रहब तऽ अबरो खेत चर जाई.
ना चहला पर भी.

दूर के ढ़ोल सुहावन सोचब जिन्दगी खुशगवार हो जाई.
आसमान पर थुकला से खुद पर पलटवार हो जाई.
जोर जोर चिल्लइला से झूठ, साँच ना हो जाई.
समय अइला पर बरगद भी खाक में मिल जाई.
ना चहला पर भी.

दुसरा के गरिऔला से कुछुओ ना मिल जाई.
कुआँ पर गईला से सब प्यास मिट पाई.
हम ही हम बानी सोचब जिन्दगी उजड़ जाई.
एक बार मर के तऽ देखीं स्वरग मिल जाई.
ना चहला पर भी.

ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.
ईऽ आपन दिल हव जइसन चाहेब हो जाई.