अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

हँसी भी सयानी हो गईल बिया

ई कलयुग में हँसी भी सयानी हो गईल बिया.
निर्मल धारा के छोड़ खिसियानी हो गईल बिया

खिसियानी के कई रूप होला कबहूँ ना जन तीं.
अगर आत्माराम के साथे दुनिया ना विचरतीं
ना मिलल हमके निर्मल ई गडहा में हेराईल बिया.
निर्मल धारा के छोड़.

दुनिया के छोड़ीं हम त अपने से अझुराईल बानी.
बीबी के हँसी खातिर सब कुछ भुलाईल बानी.
माई बाबु के हँसी त चूल्हा में जलाईल बिया.
निर्मल धारा के छोड़.

सबकरा के भूला दीं हम ख़ुद के बनाईल बानी.
आपन तरक्की खातिर बॉस में डूबाईल बानी.
बॉस के हँसी खातिर बीबी तक बिकाईल बिया.
निर्मल धारा के छोड़.

अंत समईया आईल एक बात सुन ल भाई.
हर चेहरा पर से टप टप बस लोर बहल जाई.
हर लोर अपना भीतर एगो हँसी छुपाइल बिया.
निर्मल धारा के छोड़.

ई कलयुग में हँसी भी सयानी हो गईल बिया.
निर्मल धारा के छोड़ खिसियानी हो गईल बिया.