अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कमल जब भी खिली

कमल जब भी खिली कीचड़ में ही खिली,
पउसरा खोले क पुण्य मरुधर में ही मिली,

कदम बढ़ाईब जदि दुनिया बनावे खातिर,
रहे के पड़ी तैयार खुद के मिटावे खातिर,
कईलीं जे शरम कबो खुद के झुकावे में,
गुजर जाई हर शाम बस अपने भुलावे में,
रावणी अभिमान से अंगदी पाँव ना हिली,
कमल जब भी खिली....।

आई अड़चन बहुते अपनन के मनावे में,
चाँदनी के शीतलता सब तक पहुँचावे में,
चाहत बा यदि दुनिया के रोशन बनाना,
अन्हियार होते पड़ जाई खुद के जलाना,
बिना मरे केहु के स्वरग कबहुँ ना मिली,
कमल जब भी खिली....।

कमल जब भी खिली कीचड़ में ही खिली,
पउसरा खोले क पुण्य मरुधर में ही मिली,