अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

रोशनी करे के चाह

रोशनी करे क चाह सबके बा पर सुरुजे ना ऊगल,
बाती भी त पासे बा पर दिल में तेलवे ना मिलल।।

घर में उजाला खातिर बचवन पर जान छिड़काईल,
खानदान बढ़ावे खातिर ओकर परिवार भी बढ़ाईल,
पड़ल जब जरुरत खानदानी सूरज के घरे खातिर,
खुद के खातिर ओकरा मन में आईल चाल शातिर,
रउआ आपन फर्ज निभवलीं अब हमके निभावे दीं,
अपना लईकन खातिर बाबू हमके नाम बढ़ावे दीं,
टुटल रिश्तन के कब्र पर मजबूत घर नाही बनल,
रोशनी करे क चाह...।।

ई किस्सा परिवार के रहे अब समाजो के सुन लीं,
जवन कूछ भला लगे ओके अपना खातिर चुन लीं,
कबो रहे जमाना जब एक से भला दू के बात हो,
अब मियाँ क भजन आ बीबी के डिस्को में रात हो,
हर केहु बस राजा बने खातिर ही नरिया रहल बा,
सौ कोठरी के महल सौ दालानी में बदल रहल बा,
अइसना में त बस हाथे पैर क बटँवारा बा बचल,
रोशनी करे क चाह...।।

रोशनी करे क चाह सबके बा पर सुरुजे ना ऊगल,
बाती भी त पासे बा पर दिल में तेलवे ना मिलल।।