संस्कृति-गीत
अँगना उचरि आवऽ हो!
डा॰ अशोक द्विवेदी
उड़ि उड़ि फुदुके मुँड़ेरवा
न उचरे अँगनवा में हो.
चिरई, काहे दूनी भभतेली, जइसे कि
हमनी का आन भइनी हो!
उहे हउवे गँउवाँ गिरउँवाँ
ओसरवा दलनिया नु हो
कवने अमनख, चिरई न उचरे ली
मइया हरान भइलीं हो!
निमिया दुअरवा क कटि गइले
चिरई दुखाइ गइली हो
बुझला एही के अमनख, चिरई
अँगनवा ना उतरेली हो!
धइ के कटोरवा भरल जल
छिपुली में चाउर, मइया अरज करें हो -
'अब भूल चूक कइ द न माफ
अँगनाँ उचरि आवऽ हो!'
फेरु नया गँछिया लगाइबि
दुअरवा सजाइबि हो,
धिया अब त जँगरवो बा थाकल
हमहूँ पुरान भइलीं हो!