रेवाज

डा॰ अशोक द्विवेदी

The tradition.

भोजपुरी अंचल में औरत के स्थिति में कवनो खास क्रांतिकारी बदलाव नइखे आ सकल. डा॰ अशोक द्विवेदी रेवाज में ए के सटीक रेखांकन कइले बाड़न. एह कविता के अंगरेजी अनुवाद एक जमाना में जेएनयू में आ बाद में टेक्सास वगैरह में बहुत चर्चित रहल बा. - संपादक

"का हो? हरे चलबू?
कि दुश्मन के लाठी अड़बू?
कि देबू पितरन के पानी?
मुहझँउसो, लड़िका के बरोबरी लिहें!"

खोबसन सुनि-सुनि
बड़ भइल बेलिया.
रोग सिरहाना
बलाय पैताना.

करम के लेख रहे
सुन्नर-सुरेख रहे.
अँतरा लुकात
हुँसात, डँटात
आन घरे गइल
बाप मतारी हलुक भइल!

कोठरी से चुहानी
चुहानी से अँगना
अँगना से खिरिकी
माई भइल
फेरु दादी.

बेलिया अब बहरा निकसेले
दुअरा बइठेले
नाती के कोरा ले
दुधवा पियावेले
कहनी सुनावेले.

नातिन के डाँट-पीट
खूब झहियावेले
फेर दोहरावेले -
"का हो, हरे चलबू ?
बनबू गवन्नर?
बाप से दुलरइहऽ
हमरा से ना!"