गाँव के कहानी (2)

डा॰ अशोक द्विवेदी

जब कबो बदलाव आवेला
विकास के नया नया नक्शा
उपरिया जाला !
कुछ दिन के चामक-चुमक
बइठक, मीतिंग, लाव-लश्कर
आ जलसा का धुरिया बावग में
नोचा जाला नक्शा
भा अचके बदलल सरकार का
नया फरमान पर,
मिमोर-चिंगोर के फेंका जाला.
अब त सड़क के खड़ंजा दुआरी का
डेढ़ बित्ता ऊपर आ गइल बा
लोग केहू तरे निबुकावत बा
गली-कुची हांच आ पनरोह के पानी
बन गइल बा नया विकास के निसानी !

मुँह फुलवले, रूसल बूढ़ लेखा
गाँव का उत्तर अलंगे झंखत बा -
पीपर के फेंड़ !
ओकरा चारू ओर बनल बेदी
ढहि-बहि गईल बा
पुरान-नोनियाइल ईंटा के खधरल देवाल वाला
खपड़इला घरन आ
नीचे मुँहे थसकत-ओलरल मड़इयन का बीच
कइले सीना उतान
दस-बीस गो पक्का मकान
खोंसले खपड़ोई में एन्टीना
वैस्वीकरण क झंडा फहरावत बाड़न सऽ
आ सड़की पर ले चढ़ल
मनबढ़ुवन के बेदी, नाद आ चरन
उन्हनीं के मुँह बिरावत बाड़न सऽ !

अब, कुछ लोगन का ठेंगा पर
बा पंचन के पंचाइत आ पंचाइत घर
जेकरा दरकत देवाल में
नीचे मुसकइल
ऊपर बिरनी के खोंता बा
ओरि में सपटल बाड़ी स बिछकुतिया
फाँफर जगहा में,
काहें ना अड्डा जमइहें स करइत ?
अब कवनो मनबढ़ू भा
बेवकूफे न ओइजा जाई ?

पंचाइत घर सबकर हऽ !
खर-कतवार घूर आ रेंड़वारी वाला ओकरा सहन में
बन्हालन स, सरपंच के बूढ़ बैल,
सूतेला परधान के कटहवा कुक्कुर,
सँबरू गोंड़ के छेरि ओइजा
रोजे मिमियात लेंड़ी गिरा जाली स !
चउधुर के गोइंठा ओईजा रोज पथाला
साँच पूछीं त
पंचाइत घर का ए दुर्दशा पर,
अब केहू ना अउँजाला !

भइबो कइल कई बेर चरचा :
कि पंचाइत घर ठीक होखे
आ अब से, जेवन काम होखे
नींक होखे
दिल्ली से नारा आइल
आई तब्बे सच्चा सुराज
फेरू से होई जब पंचायती राज !
बाकि करो त का करो
केकर-केकर दाढ़ी धरो गाँव ?
काकुल चउधुरी, हरखि चमार
आ रकटू भर का करिया तिकोन में
अँटकल बा फैसला
बाम्हन छत्री, भुइंहार अलगे अइंठत बाड़न
'आम सहमति' नइखे बनप पावत.
फैसला नया निर्मान के
गाँव के आन बान आ शान के
अब, सभे मिली गील करऽता
परथन पिसान के !

पांड़े का पुरा से चउधूर टोला ले
आ ठाकुर का मठिया से
परधान का खोरी ले
दू गो गड़ही बाड़ी स
बहुत बरियार --
चारू ओर से छिछिल, बीच मं गहिर
कींच-कानो भरल
एकदम सरल.
ओकरे करिया पानी में उतिराइल बा खर कतवार अस
संस्कृति आ रेवाज
नेकी-बदी, दोस्ती-दुश्मनी
कुछऊ साफ नइखे.
अतना जरतपन आ अनदेखउवल
कि सब, भितरे-भीतर रिन्हात चाउर अस
खदकत बा !