स्कूल के एडमिशन

आलोक पुराणिक

का जमाना रहे उहो!

निमन निमन स्कूलन, गुरुकुलन के आचार्य लोग खुदे आके बच्चा माँग ले जात रहुवे अपना किहां पढ़ावे खातिर. राजा दशरथ से मुनि वशिष्ठ मांग ले आइल रहलन राम आ लछुमन के. बढ़िया दिन रहे ऊ, आज जइसन नाही. अब राजा दशरथ अपना बालकन के ले के कवनो स्कूल में नाम लिखावे जइतन, त कुछ एह तरह से बातचीत होखित -

आपन इन्कम, अपना बाबूजी के इन्कम, आ उनुका बाबूजी के इन्कम बताईं?

देखीं, रउरा लड़िकन के ज्ञान के परीक्षा लीं. ओकनी का बारे में पूछीं. - राजा दशरथ कहतन

स्कूल वाले कहतन लड़िकन के इन्कम थोड़े होला, जे ओकनी का बारे में पूछीं? आ ओकनी का ज्ञान से उनुका कवन मतलब बा.

राजा दशरथ कहतन - देखीं, हमार लड़िका सच्चरित्र हउवें सँ, तेज बुद्धि के बाड़े सँ.

ओकरा से का होला? स्कूल वाला बताइत.

ओकरा से का होला, सहिये बात बा. चरित्र देखल ना जा सके, नोट देखल जा सकेला. जवन देखल जा सकेला ओकरे वैल्यू होला. कुशाग्रता गिनल ना जा सके, नोट गिनल जा सकेला. जवन गिनल जा सके, ओकरे बाजार में कीमत बा. स्कूल त एही फंडा पर काम करेलें.

तब संत वशिष्ठ स्कूल होत रहलन स. अब त संत रावण स्कूलन के चलन हो गइल बा.

एयरकंडीशंड क्लास रूम में पलाये वाला खातिर चौदह साल खातिर जंगल में जाये के फरमान आ जाव, त संवाद कुछ एह तरह के होखी

रउरा चौदह साल खातिर जंगल में जाए के बा.

ठीक बा, आई होप जंगल्स आर एयरकंडीशन्ड?

ना. रउरा बात समुझ नइखीं पावत. जंगल में एयरकंडीशनर ना होखे. जंगल में कुछुवो ना होखे. पंखा तक ले ना भेंटाई.

जंगल का यूपी में होले सँ कि बिजली पंखा वगैरह ना होला?

ना, ना. जंगल कतहीं के होखे, एम पी भा यूपी के. कतहूं पंखा ना होखे.

का? जंगल में पिज्जा, बर्गर, चाऊमिन, मल्टीप्लेक्स, शापिंग मॉल कुछ ना होला?

ना ई सब ना होला. ओहिजा पेड़ होला, झाड़ी होला, जानवर होले सँ.

जंगल के जानवर असली होखें ले सँ कि बनावल? हमनी का त बस बनावटी जानवर देख के पढ़ले बानी सन. वइसे बिना पिज्जा के जीवन कइसे बितावल जा सकेला? नो वे! जहवाँ जहवाँ लाइफ होला, ओहिजा त पिज्जा आ शॉपिंग काम्प्लेक्स होखबे करेला. जनबे करीलें, पिज्जा इज एन एसेन्शियल आयटम.

देखीं, जंगल में राक्षस होले सन, शेर होखेला.

ना बाबा ना. हमरा त जंगल नइखे जाये के.

देखीं जाये के त पड़बे करी. वचन दिहले बानी, निबाहे के पड़बे करी.

त हम वचन तूड़ देब. एयरकंडीशनर में पिज्जा तूड़े खातिर प्रामिजे का, कुछुवो तूड़ल जा सकेला.

निमने भइल कि सबकुछ पहिलहीं हो लिहल. ठीक कहत बानी कि ना?


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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