अन्हार के समाजवाद

आलोक पुराणिक

अन्हार बा, दूर ले अन्हार बा. ना जी ई कवनो कविताई नइखे होत. खाँटी यथार्थवाद बा. बिजली गायब रहे त कवि ना जागे. कविता लिखे क न्यूनतम जरुरतन में से एगो होला बिजली क मौजूदगी. उ त व्यंग्यकारे कड़ेर जान वाला मनई होला जे बिजली गइलो पर चिन्तन कर सकेला. एने बिजली जाए का हालात पर चिंतन कइनी त इहे कुछ सामने आइल -

1- बिजली के गइल आदमी के समाजवादी हालात का ओर ढकेलेला, सभे एक जइसन हो जाला. हर घर के बल्ब, लाइटिंग अलग अलगा तरीका के होला. कईअन के त बहुते फूं फां टाइप. कईअन क बहुते गरीब टाइप के होला. अँजोरो सभकर अलगा अलगा टाइप के होखेला बाकिर अन्हार सबकर एके जइसन. अन्हार सर्वव्यापी होला, एक जइसन ग्लोबल होला. अँजोर के टाइप सब जगहा अलगा अलगा बा. कतहीं ट्यूब बा त कतहीं बल्ब. अंजोर के वेराइटी त दिल्लीए में पचासन तरह के होला, बाकिर अन्हार अफ्रीका से लेके अमेरिका तक एके जइसन होले.

2- एहसे मालूम होला कि अँजोर अलगा अलगा टाइप के होके लोग के अलगा अलगा समूह में बांटेला, बाकिर अन्हार एके जइसन होके सबका के एकता के संदेश जइसन देला. मतलब ई कि अन्हार अपना चरित्रे में समाजवादी होला.

3- एहसे इहो साफ होला कि बिजली के समस्या दरअसल बस अतनने भर बा कि कुछ घर में बिजली बा, कुछ घर में ना.कवनो घर में ना होखे त केहू के शिकायत ना होखी. उजाला सबका ना मिल सके त का, अन्हार के त एकसमान वितरण होइये सकेला.

4- बलुक अन्हार ओह घर का हिस्सा में बेसी आला जवन बड़ होले. पाँच कोठरी वाला घर का हिस्सा में पांच कमरा भर अन्हार आवेला आ एक घर वाला के एके कमरा भर. एकरा के न्यायपूर्ण वितरण मानल जा सकेला. कमरा कोठरी बेसी बा त अन्हारो बेसी होखी. छोट घर के कम अन्हार झेले पड़ेला. अब चुने के ई बा कि या त कमरा बड़हन ले ल, भा बड़हन अन्हार.

चलीं, अन्हार का ओर चलल जाव. हमरा संगे चलीं, हम रउरा के अंजोर से अन्हार का तरफ ले चलब.


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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