मातृभाषा

भगवती प्रसाद द्विवेदी

(एक)

जइसे चरवाही से छूटल
गाइ के आहट पावते
खूँटा में बन्हाइल बछरू
लागेला डँकरे,
ओने ओकर माइयो लागेले हँकरे,
जइसे लरिका के रोवाई सुनते
लरकोरी महतारी के छाती से
फँफात दूध लागेला टघरे,
ओइसहीं जब-तब अनसोहाते
जबान पर आ जाली
मिसरी-अस घोरा जाली
होके खुलासा
हमार मातृभाषा!

(कविता संग्रह जौ जौ आगर से)


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१