(महावीर जयंती पर विशेष)

सत्य, अहिंसा, दया, तेयाग अउरी तपस्या के प्रतीक : भगवान महावीर

प्रभाकर गोपालपुरिया

भगवान महावीर के जनम 599 ई. पूर्व में चइत सुदी तेरस के वैशाली (अब बिहार में इ क्षेत्र) में एगो राजपरिवार में भइल रहे. इनकर बचपन के नाम वर्धमान रहे. इनकर माई श्रीमती त्रिशला एगो धरमपरायन अउरी सुशील महिला रहली. महावीर के बाबूजी राजा सिद्धार्थ कुंडूपुर के शासक रहले.

राजपरिवार में जनमल भगवान महावीर के बचपन ऐशो-आराम में बीतल. इनकरा कवनो चीज के कवनो तरह के कमी ना रहे. कहल जाला न कि कुछ लोग मुँहे में चाँदी के चम्मच ले के पैदा होला त समझी कि भगवान महावीरो एगो नाहीं बलुक कईगो चाँदी के चम्मच ले के पैदा भइल रहले.

लेकिन का एगो सच्चा इंसान के, अवतारी पुरुष के, जीवन के वास्तविक महत्ता समझेवाला के धन-दउलत, एशो-आराम बाँधि के राखि सकेला? का ऊ ए अमोल जीवन के सांसारिक सुख में बहा सकेला? शायद एकदमे नाहीं. ओकरा के तऽ एह अमोल जीवन के वास्तविक सुख पावे खातिर सत्कर्मन में, परानी-मात्र का कल्यान में, दूसरे के दुख दूर कइले में खरच कइले में असली आनन्द के प्राप्ति होला.

एह सांसारिक मोह-माया के तेयाग क के, एशो-आराम के जिनगी के तेयाग क के सच्चा सुख का तलाश में भगवान महावीर 30 बरिस की उमर में घर से निकलि गइलें. एगो संयासी का रूप में सच्चा ज्ञान का खोज में ऊ बिचरन करे लगले, मनन-चिंतन करे लगले. लगभग 12 बरिस ले ऊ घोर तपस्या भी कइले. कठोर अउरी सच्चा साधना का बाद उनके सिद्धि प्राप्त भईल आ उनके वास्तविक सुख के पता चलल.

सिद्धि प्राप्त कइला का बाद राजकुमार सिद्धार्थ (महावीर) भगवान महावीर हो गइले अउरी घुमि-घुमि के उपदेश देवे लगले. परानि-मात्र के जगावे लगले, सबके सच्चाई से अवगत करावे लगले. ऊ आपन बाति प्राकृत भाषा में जनता-जनारदन का सामने रखलें. अब तऽ उनकरा जीवन के एक्के उद्देश्य रहे, पूरा परानी-मात्र के कल्याण.

अहिंसा, सत्य, दया, तेयाग के प्रतिमूर्ति भगवान महावीर एगो सुंदर अउरी सभ्य समाज के निरमान खातिर जैन धरम के नींव रोपले अउरी अहिंसा, दया, परेम, भाईचारा के संदेश जन-जन तक पहुँचवले. जैन धरम में 24गो तीर्थंकर लोगन के बरनन बा जवने में भगवान महावीर अंतिम (24वाँ) तीर्थंकर रहले. जैन धरम में इनकर एगो विशेष महत्ता बा. जैनधरम में तीर्थंकर के मतलब होला 'एह संसार रूपी सागर से पार लगावेवाला'. जैन धरम एह तीर्थंकर लोगन का उपदेश अउरी चिंतने-मनन पर आधारित बा.

सत्य, अहिंसा अउरी दया के प्रतिमूर्ति भगवान महावीर 72 बरिस की अवस्था में ए नश्वर काया के परित्याग क के निर्वान प्राप्त कइले.

भगवान राम अउरी भगवान महावीर के जीवन के देखल जाव त बहुते समानता बा. हाँ, अगर गौर से देखल जाव तऽ भगवान राम जहाँ माई-बाप का आज्ञा से राजपरिवार के तेयाग कइले, भगवान महावीर केहू का आज्ञा से ना बलुक अपना मन से मानव कल्याण बदे राजपरिवार के तेयाग क दिहले.

आजु जहाँ लोग पइसा खातिर कुछओ करे के तइयार बा. भ्रष्टाचार, अशांति, हिंसा चारु ओर पसरल बा. प्रेम, विश्वास रो रहल बा. अइसना में भगवान महावीर के जीवन एगो उगत सूरज का भाँति पूरा संसार में रोशनी भर सकेला अगर उनकरा कथनी अउरी करनी पर सब लोग अमल करे, ओके अपना जीवन में अपनावे. ऊ सोंचे कि एगो राजपरिवार से तालुक राखेवाला अदमी संसार की भलाई खातिर भौतिक सुख-समृद्धि के तेयाग क दिहलसि जवना खातिर आज हमनी जान एक-दूसरा के दुश्मन हो जा तानी जाँ. बिचार कइले के जरूरत बा.

चूँकि भगवान महावीर के जनम चइत सुदी तेरस के भइल रहे एही वजह से से हर बरिस एहि दिने उनकर जयंती धूमधाम से मनावल जाला. उनकर जयंती पूरा भारत का संगे-संगे संसार का कुछ दोसरो भागन में प्रेम, शांति, अउरी अहिंसा का प्रतीक का रूप में धूम-धाम से मनावल जाला. भगवान महावीर के लोकप्रियता के अंदाजा खाली एतने से लगावल जा सकेला की एह तिउहार के खाली जैनिये लोग ना बलुक दोसरो समुदाय के लोग शालीनता अउरी अपनापन का संगे मनावेला.

आईं सभे आजु हमनियों का एह महापुरुष आ भगवान के जयंती पर सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा के संदेश घरे-घर ले पहुँचावल जाव अउरि एगो सभ्य, शांतिपूर्ण समाज का निर्माण में सहभागी बनल जाव.

बोली सभें भगवान महावीर की जय. भारत माता की जय.


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