सहरियन से बिगड़ल देहात बा

प्रभाकर गोपालपुरिया

एगो समय रहे जब देहात में नेह के गंगा बहे. गाँव-जवार के लोग मिलजुल के रहे. कपट अउरी दुस्मनी के नामोनिसान ना रहे. अगर रहबो करे तऽ जरुरत पड़ले पर दुस्मनो सहायता करे खातिर खड़ा रहे. हमरा इयाद बा की अगर गाँव में कवनो जग-प्रयोजन, निमन-बाउर होखे तऽ पूरा गाँव एकठ्ठा हो जा. केहु के ढेर तबियत खराब हो जाव तऽ पूरा गउँए ओ आदमी के लेके बलाके पर टूटी जाव.

गाँव में छोट-मोट चुनाव होखे तऽ आदमी भले दूसरे-दूसरे की ओर से रहे लेकिन आपन नेह अउरी मेल बनवले रहे. अरे इहाँ तक की मोकदिमा लड़े लोग एके साथे जाव. अगर भुला-भटकी के कवनो मनई कवनो गाँव में चली जा तऽ लोग पानी पियवले की बाद हालि-चालि अउरी पता पूछे. सब एक-दूसरे की निमन-बाउर में एक साथे हो जाव. गाँवे में गरीबी तऽ रहे लेकिन उ गरीबी इज्जती वाली अउरी नेह के रहे. लोग खुदे भले ना खाव लेकिन दूसरे के खिया के चएन के साँस लेव.

आजु के गाँव-देहात बदली गइल बा. लोग जेतने कहे खातिर सभ्य अउरी शिक्षित होत जाता, पइसा कमाता ओतने नेह अउरी भाईचारा से दूर होत जाता. अरे भाई आजु की समय में परधानी की चुनावे में गोली चली जाता. लोग आपन काम-धाम छोड़ी के बइठी के खाली इहे सोंचता की फलनवा के का करीं की परेसान हो जाव. गाँव में कवनो घर अइसन नइखे बचत जवन मुकदिमा नाहीं लड़त होखे भा गाँव में ओकरा केहु से दुस्मनी ना होखे. अरे भाई अइसन पढ़ाई, पइसा कवने काम के जवन नेह अउरी भाईचरे के दूर कऽ दे. लइकन के जवान होते अउरी विआह होते घर में अलगा-बिलगी सुरु हो जाता. एगो उ समय रहे जब छोट लइकन के ओकरी काका, काकी, बाबा, ईया सबके दुलार मिले. एक छत की नीचे घर के सब लोग परेम से बइठी के रूखा-सूखा खा के संतुस्ट हो जाव अउरी गाँधी जी के उ बाति कि, भारत के आत्मा गाँवे में बसेला सही रहे अउरी सही रहे संजुक्त परिवार के नेह.

आजकल तऽ गाँव से सहरिए ठीक बा. काहें कि लोग के दूसरे से अगर भले मतलब नइखे रहत लेकिन केहु-केहु के बुरो तऽ नइखे चाहत. सहर के सब लोग अपनी लइकन के पढ़वले-लिखवले के कोसिस करता, अपनी काम में लागल रहता जबकि गाँव के लोग तऽ अपनी लइकवने कुल्ही का संगे बइठी के दूसरा के उजड़ले के पलान बनावता. उ लइका का पढ़ी अउरी उ समाज, गाँव के केने ले जाई. सब मिलाजुला के देखले पर इहे लागऽता की आज की जबाना में सहरियन से बिगड़ल देहात बा.


रिसर्च एसोसिएट, सीएसई,
आईआईटी, मुम्बई