चालीस में चार कम

प्रभाकर गोपालपुरिया

रउआँ सभे तS जानते बानी की हजाम केतना छतीसा (चालीस में चार कम) होला लोग. सादी-बिआह, नीमन-बाऊर केइसनो जगी-परयोजन होखे हजाम अउरी हजामिन लोग हरदम पंडीजी लोगन के दबिएवले रहेला लोग. अरे हजामिन तS हजामो से चार जवा अधिके होली. एही से कहल बा की हजाम चालीस में चारी कम होने, माने छतीसा होने. रउआँ सब के हम एगो कहानी सुना के ई सिध कS देतानी की हजाम भाईलोग सही में चालीस में चारी कम होला लोग. तS सुनी सभें कहानी :-

एगो हजाम उँखियारी में आपन ऊँखी अगोरत रहे. ओकरीए गाँव के एकजाने पंडीजी, एकजाने बाबूसाहब, एकजाने हजाम अउरी एकजाने अहिर ओ हजमा के घघेलिआ के धड़ाधड़ ओकरिए खेते में से एकहगो ऊँखी तूड़ी लेहल लोग. हजमा रहे अकेले उ चारी जाने से कइसे निपटो. उ बहुत सोचले-बिचरले की बाद ओ चारु जाने की लगे पहुँचल अउरी अहिर भाई से कहलसि, "का रे अहिरकट! तें काहें ऊँखी तूरले हS. (पंडीजी की ओर इसारा कके) इहाँ का तS पंडीजी हईं, बड़कवा हईं, कथा-पोथी बाँचेनी. (बाबूसाहब की ओर इसारा कके) इहाँ का बाबूसाहब हईं, हमनी जान के रक्षक हईं, ताक लगले पर सहयतो कS देइबी अउरी (हजाम की ओर इसारा क के) इ हमार जाति भाई हS. इहो ऊँखी तूड़ी सकेला पर तें काहें तूड़ले हS ?"

एतना बाती सुनी के पंडीजी, बाबूसाहब अउरी हजाम तीनू जानें हँसे लागल लोग अउरी हजमा अहिर भाई के खूब बनवलसि. जब अहिर भाई के खूब बना लेहलसी तS अहिर भाई आपन रास्ता ले लेहनें.

ओकरी बाद हजाम भाई से कहलसि, "(पंडीजी अउरी बाबूसाहब की ओर इसारा क के) इ सब बड़कवा हS सब लेकिन ते सारे जाति भाई हो के ऊँखी काहें तुड़ले हS ?" एकरी बाद हजामो भाई के खूब बनवलसि. हजामो भाई आपन रास्ता नापी लेहने.

एकरी बाद हजमा बाबूसाहब से कहलसि, "(पंडीजी की ओर इसारा कके) इहाँकाँ तS पंडीजी हईं, दुनिया सलाम करेला, भगवान खुदे बभने के महत्ता बतवले बाने. इहाँ के पैर पुजाला लेकिन रउआँ ऊँखी काहें तुरनी हँ? बबुआन हईं एकर मतलब की सबके घर उजारत चलबी." एकरी बाद हजमा बाबूओ साहब के देहीं खूब बनवलसि. बाबूओ साहब आपन रास्ता धS लेहने.

अब तS पंडीजी अकेले हो गइने अउरी लगने हजमा से चिरउरी करे की हमके मति मारु. आगे से हम ऊँखी नाहीं तूरबी. हजमा कहलसी, "रउआँ पंडीजी हईं तS कहवाँ ले सबके निमन बुधि सिखाइबी तS दूसरे की खेते में से ऊँखी तूड़वावत बानीं. आरे राऊर पैर पुजाला पीठी नाहीं." एतना कहले की बादि हजमा एगो ऊँखी तुड़ी के पंडीजी की पीठी पर दे दनादन, दे दनादन कS देहलसि. पंडियोजी हेत्ती चुकी मुँह लेके अपनी घरे चली गइनें.

कथा गइल बन में, सोंची अपनी मन में.

बुझा गइल न चालीस में चारी कम के मतलब.


रिसर्च एसोसिएट, सीएसई,
आईआईटी, मुम्बई