तहरो गोटी लाल बा अउरी तहरी लइकवो के

प्रभाकर गोपालपुरिया

बाबूजी आइल बाने. बहुते उदास बाने. कहताने की कवनो छोट-मोट काम अपनी गउएँ-जवरवे में मिली जाई तऽ करबी बाकिर अब मुंबई नाहीं जाइब. अब उहवाँ जीवन के कवनो भरोसा नइखे, कब का हो जाई केहू जानत नइखे. अबहिन ले त खाली राजे बाबू रहने हँ पर अब तऽ अतंकवो उहवाँ मौत के चादर पसारी देले बा. जे बचल बा उ हो भगवान के दोहाई देता अउरी जे आतंकवाद की भेंट चढ़ी गइल ओकरो माई-बाप, भाई-बहिन, मेहरारू अउरी लोग-लइका भगवान से पूछि रहल बा की इ तूँ का कऽ देहलऽ ?

माई बाबूजी के सांतवना दे रहल बिया, समझा रहल बिया. माई बाबूजी से कही रहल बिया की ए जमाना में नेतवन कुल्हि के दु-चारि लाख घूसो देहले पर सरकारी नोकरी नइखे हो पावत अउरी रउआँ बानी की आतंकिन कुल्हि की डर से ई नोकरी छोड़े के कहऽतानीं. माई आगे कही रहल बिया की घबरइले के कवनो ताक नइखे. अब तऽ आपन सरकारो आतंकवाद पर गंभीरता से बिचार कऽ रहल बिया अउरी ए के समूल नाश कइले के बीड़ा उठा ले ले बिया. रउआँ देखबि बहुत जल्दिए आतंकबाद के सफाया हो जाई.

माई अब सुसुक-सुसुक के कही रहल बिया की लइकन के पढ़ाई-लिखाई बा, दवा-दारू बा, नेवता-पतारी बा, दु-चारि काठा खेत खातिर खादी-बिया, जोताई-हेंगाई बा अउरी त अउरी हमनीजान तऽ रूखो-सूखो खा लेहल जाई, उ हो ना रही तऽ उपासो रही जाइल जाई पर एगो लरीकोरी पतोहि बिया, एगो दूध-पीयत नाती बा, ओ कुल्हि के का होई ?

माई अउरी बाबूजी की बीचे में चलत इ बातचीत हम दोगहा में बइठी के सुन रहल बानी. हमहुँ बहुते उदास बानी, बाबूजी के बाती सुनी के. हमरा इ चिंता सतावता की का बाबूजी अब सहिए मुंबई नाहीं जइहें ? दु-चार दिन की बाद, एकदिन का देखऽतानी की माई सतुआ-पिसान बाँधि रहल बिया, गोझिया अउरी लिट्टी बना रहल बिया. हमार मलिकाइनो ओकर हाथ बँटा रहल बाड़ी. हम जान नइखी पावत की इ तइयारी काहें होता ? तवले कहीं हमार मलिकाइन हमरी लगे आके कहतारी कि बाबूजी आजुए कुसीनगर एक्सप्रेस से बंबई जात बानीं.

मलिकाइन के इ बाति सुनी के हमरी खुशी के ठिकाना नाहीं रही गइल. हम दउड़त घर में से बाहर निकली गइनीं अउरी अपनी लँगोटिया इयार चिखुरी की घरे पहुँचि गइनी. इयार पुछने की का हो नकछेदन, बहुते खुस लागतारऽ. कवनो बाती बा का ? हमरा आपन खुसी रोकाइल नाहीं अउरी हम कहनी, 'हँ इयार. हमार तऽ गोटी लाल बा.' हमार इयार कहने, 'काहें मरदवा बुझउअल बुझावतारऽ, साफ-साफ बतावऽ कि का बाति हऽ.'

हम कहनी, 'इयार. हमार बाबूजी मुंबई जाए खातिर तइयार हो गइल बानें. आ तूँ तऽ जानते बाड़ऽ की भारत के हर शहर, खासकर बड़हन-बड़हन में कवनेगाँ आतंकवाद आपन पैर जमा लेले बा. सरकार खाली लउर-लबेदई हाँकतिया, बड़हन-बड़हन बाति कही रहल बिया, लोग के समझा रहल बिया की डेरइले के ताक नइखे, आतंकिन कुल्हि के मुँहतोड़ जबाब दियाई पर हम तऽ जानते बानी की इ सब ओटे के राजनीती हऽ. कुछु होई जाई नाहीं. इ सब हवाई फायरिंग हऽ.'

हमार इयार कहने,'इ तऽ तूँ लाख रुपया के बाती कहतारऽ, अबे लोगवो धीरे-धीरे शांत हो जाई. पर तूँ एगो बाति बतावऽ की एसे तोहरी लाल गोटी से का लेना-देना बा.' हम कहनी, 'तू हूँ मरदे इयार, जिनगी भर बुरबके रही गइलऽ. मान लऽ एहींगाँ आतंकवाद रही तऽ एकदिन मुंबई से मुंसिपिलटी के हमरी लगे चिठी आई की, हमनी जान दुख की साथे तहके इ सूचित करतानी जाँ की तहार बाबूजी आतंक की भेंट चढ़ी गइने. तूँ जल्दी से आके उनकरी जगही पर नोकरी जोवाइन कऽ लऽ अउरी सरकारो मृतक लोगन की परिवार के पाँचि-पाँचि लाख रुपया देहले के एलान कइले बिया. अब बताव हम बेरोजगार के एसे बड़हन खुसी के बाति का होई.'

हमार इयार तऽ चिहा गइने पर कुछु सोंची के बोलने, 'ए इयार. तहरे गोटी लाल नइखे, तहरी लइकवो के गोटी लाल बा, अउरी एहींगाँ आतंकवाद रही तऽ सियार-गिध सबके गोटी लाल बा.' हमरा तनी रीसी बरी गइल अउरी हम कहनी की ए मरदे इ तूँ का बतिआवत बाड़ हो ? हमार इयार कहने की रिसिया मति, जवनेगाँ मुंसिपैलिटी के चिठिया तहरी लगे आई ओहीगाँ कुछु दिन की बाद तहरी लइकवो की लगे आई. अउरी आतंकवाद के ना रोकल गइल तऽ चिठियो लिखेवाला केहू ना रही. सब सियार-गिध मासु खा-खा के निहाल हो जइहें कुल्हि. इयार के इ बाती सुनी के हम रोवत अउरी नेतवन के गरियावत घरे भागी अइनी अउरी बाबूजी के मुंबई गइले से रोकी लेहनी.


(इ त कहानी बा, बाकिर एही बहाने हम कहल चाहत बानी कि अगर समय रहते सरकार अउरी भारत के जनता नाहीं जागल तऽ बहुत अबेर हो जाई अउरी सबकुछ तहस-नहस हो जाई. अगर जनता खुदे ईमानदार नाहीं बनी अउरी सोवारथ से ऊपर नइखे उठत तऽ सरकार अउरी सफेदपोसन कुल्हि के तऽ ओहिंगा गोटी लाल बा अउरी लाल बा आतंकवाद के, अमेरिका अउरी पाकिस्तान के. )

भारत माता की जय.


रिसर्च एसोसिएट, सीएसई,
आईआईटी, मुम्बई