त काँहें नाहीं नेता बनल जाव भाई ?

प्रभाकर गोपालपुरिया

जमाना नेते के बा भइया,
अभिनेता से ले के अधिकारी तक,
समाजसेवक से लेके चपरासी तक,
केहू के आपन काम नाहीं भावता,
उ नेते बनल चाहता, उ नेते बनल चाहता.

उ जानता की नेता बनले की बाद,
सब गलत काम कइल आसान हो जाई,
भले हम होखी अपराधी, पर नेता बनले की बाद,
जेलर, पुलिस, अधिकारी सब सैल्यूट बजाई.

हम उहे करब जबन मन में आई,
दिनभर में चारीगो कोट बदलब भाई,
दीमक की तरे चाटी जाइब, हम देस के,
पेस्ट-कंट्रोल के कंट्रोल हमरीए हाथे में रही भाई.

कहीं भासन दे के दंगा कराइब,
त कहीं गोली चलवाइब,
अउरी ए में पीड़ितन के आँसुओ
हमहीं पोछबि भाई.

अब बताव जब नेतन के एतना अधिकार बा,
देस अउरी जनता उनहीं के गुलाम बा,
त काँहें नाहीं नेता बनल जाव भाई ?
त काँहें नाहीं नेता बनल जाव भाई ?


रिसर्च एसोसिएट, सीएसई,
आईआईटी, मुम्बई