चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह

"आरोही हजारा" के मोती


पनघट घुंघट सादगी, बर पीपर के छांव.
कवन चुरा के ले गइल, काटे धावे गाँव.


काहे खातिर होत बा, लूट पाट उत्पात.
जानत दुनिया गजनवी, रोवत सुसुकत जात.


गोरी सुतल सेज पर, कर सोरह सिंगार.
सास ससुर कुत्ता बनल, नोकर बनल भतार.


देवर भाभी बीच में, छत्तीस के संबंध.
सास पतोहिया बीच में रोज नया अनुबंध.


सुर ताल लय छन्द बिन, अब कविता बेकार.
बिन साड़ी सिंगार के, लंगटे नाचत नार.

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His article were published in the early issues of Anjoria : The First Bhojpuri Website. This issue is available in PDF format and you may need Adobe Reader to read it.

कूटनीति - लघुकथा