बिदेसिया के बात
डा॰कमल किशोर सिंह
मन ना मलिन करऽ,
मोर प्यारी धनिया.
गम काहे के?
संग हम दू परनिया,
गम काहे के?
छूटल हिन्दुस्तान,
नाहीं छूटे हिन्दुस्तनिया.
छूटिहें ना संग-साथी,
बबुआ, बबुनिया.
गम काहे के?
संगे ना बुझाई
परदेसे परेशनिया,
हँसत-गावत
बीति जाई जिनगनिया,
गम काहे के?
मुखवा पे लावऽ
तनी मधुर मुसकनिआ,
देखल ना जाला
तहरा अँखिया में पनिया.
गम काहे के?
गोरकी, सँवरकी,
सुन्नर लड़िकिनिया,
कबहूँ ना बनिहें
तोहार सवतिनिया.
गम काहे के?
चाहीं नाहीं राज-पाट,
नाही सोना, चनिया.
रहब चाहे रंक, बाकि,
राखब तोहरा रनिया,
गम काहे के?
शिक्षित सुयोग सब
बनावऽ संतनिया,
जगवा में रही
ईहे आपन निशनिया.
गम काहे के?
संग हम दू परनिया,
गम काहे के?
रिवरहेड, न्यूयार्क