सादगी के सुख

डा॰कमल किशोर सिंह

जबे गहुँ तबे अतवार करी ला,
भविष्य के ना चिन्ता हम बेकार करी ला.
धान चाउर जबे घरे, चुड़ा दही तबे चले,
जबे आम फ़रे, सतुआन करी ला.

कोठिला कबो नाही भरल,
बाकी चुल्हा रोज जरल,
दुर, दुर ना दर से भिखार करी ला.
जबे गहुँ तबे अतवार करी ला,

कतना पानी मे बानी, हम अच्छी तरह जानी,
बिना पैसा के हम ना बाजार करी ला.
कल्पतरु कल्पना त कबहुँ ना कइले ’कमल’
गुलर नीमियो नीचे गुलजार करी ला.

सादगी के सुख के सराहना आसान नाही,
जतना बाटे हम ओतने मे बिहार करी ला.
जबे गहुँ तबे अतवार करी ला,
भविष्य के ना चिन्ता हम बेकार करी ला.


रिवरहेड, न्यूयार्क