रेलगाड़ी आरक्षण : एगो क्रांतिकारी सुझाव

कमलेश पाण्डेय

डेढ़ सौ साल से हमनी के देस में रेलगाड़ी चलेले, जेकरा में एगो इंजन रहेला , बाकी डिब्बा. डिब्बन में आदमी भरल रहेले. ई लोग के एगो आरक्षन सूची होला, जेकरा अंत में एगो 'प्रतीक्षा-सूची' होखेला. प्रतीक्षा सूची के लोग पहिले प्लेटफ़ारम प खड़ा होके जोहत रहेला, फेर जोहते-जोहते रेल प चढ़ि जाला. आगे जोहते-जोहते लोग ओहिजा पहुंच जाला जहां जाए के रहेला. ई कहल मुस्किल बा कि उहां पहुंच के उ लोग के इंतजार खतम होखे कि ना. 'आरक्षण-सूची' के लोग के 'बर्थ' मिलल रहेला, जेपर अपना औकात भर लोग टिक, बइठ, लोटा के, चाहे सूत के जाला. एकरा अलावे भी बहुत लोग डिब्बा में ढुकल रहेला, जे 'खाली स्थान के पूर्ति' करेला. खाली स्थान जे बा से निचवा, पावदान प, पैखाना के भीतर आ बाहर, बर्थ प सुतल लोग के सिरहाना आ गोनतारी होखेला. ई सब लोग के ध्यान राखे खातिर करिया कोट पहिनले एगो रेल-कर्मचारी होखेला, जे नोट से भरल पाकिट संभरले नट जइसन डिब्बा में आगा-पीछा करत रहेला, बाकिर डिब्बा में ठुंसाइल लोग के सिवा कौनो दोसर चीज के आगा-पीछा त लउकबे ना करे. कोट के पाकिट में भरल नोट ऊ बर्थन के निलामी में मिलल होखेला, जेकर मालिक पिछला स्टेसन प छूट गइल होखे. ई नोटवन में उहो नोट समाइल रहेला, जे यात्री लोग ऊ टिकटवन के बदले देला, जे ऊ लोग ना किनले रहेला.

रतिया में इहो सब लोग सूत जाला. जे जहां, खड़ा, अड़ल, पड़ल, लटकल चाहे अटकल रहेला, उहें सूत जाला. चलत गाड़ी में एह बेरा हालत एकदम अस्थिर रहेला, जेमें तबे ले कुछुओ हलचल ना होय, जब ले ऊपर लटकल कौनो आदमी नीचे पटाइल लोगन के ढेर पर गिर न जाव. अइसन होखला प तनी-सा मारा-मारी के बाद हालत काबू में आ जाला आ सब लोग फेर मिल-जुल के सूत जाला. गड़िया जे बा से चलत-रुकत रहेला. कबहूं-कबहूं गड़िया के रुकला प कुछ जागल लोग चढ़ि आवेला आ सूतल लोगन के संगे दूध में पानी जइसन फेंटा जाला. कुछ इलाकन में ई जागल लोग तनी अलगे किसिम के होखेला, हाथ में देसी कट्टा आ छूरी लेहले ई लोग पहिले त सूतल लोग के जगावेला, फेर ऊ लोग के समान के बोझा हलुक क देवेला. अइसन होखला के बाद लोग फेर सूत न पावे. बोझा हलुक करे के कारोबार में लागल कुछ लोग सूतल लोग के जगइबो ना करे, चुपचाप बोझा हलुक क के चल जाला.

गाड़ी में कुछ डिब्बा अइसनो होला, जेमें 'आरक्षण-सूची' के झमेला ना होखे. एमें बाहर से देखला प अइसन लागेला कि भीतर आदमी लोग के मलबा भरल बा. एह डिब्बन में जौन खाली जगे होला, ऊ तरह-तरह के गंध से भरल रहेला, जे आदमी लोग के देह के सब हिस्सा से निकसल रहेला. रतिया में इहो डिब्बा के लोग ओहि तरीका से सूतेला.

भोरे-भोरे सब लोग जाग जाले. हर सौचालय प 100 आदमी के हिसाब रहला से तुरते जल आ मल संकट हो जाला. गड़िया बीच-बीच में चलतो रहला से लोग मर-मैदान खातिर ऊ खेतन में न जा पावेला, जेकरा से होके रेल-लाइन जाला. खैर! आगे लोग खाली भइल पेट के फेर भरे में लाग जाला. ई लोग के मदद खातिर डिब्बा में रंग-बिरंग के झोरा, टोकरी, दौरा में खाए-पीए के चीज भर के जाने कहां से आ जाला. एकरा बाद गाड़ी के संगे-संगे लोग के मुंहवो चलत रहेला. कुछ लोग के मुंह लगातार बोलला से चलेला, बाकी लोग के खइला से आ कुछ लोग के दुनु कारन से. दिन में 'लोकल पसींजर' नाम के ढेर लोग सब डिब्बा में चढ़ि जाला, आ धकिया-मुकिया के जहां सींग समाय, जम जाला. लोग के दुपहरिया होत-होत डिब्बा में चिनिया बदाम, केरा-नारंगी के छिल्का आ कागज-पत्तल के ढेर लाग जाला. कुछ समझदार लोग ई कुल्ह जंगला से बाहरो फेंकत रहेला. कुछ लोग सफर में ताश खेलल ठीक समझेला, आ भुइयां, रुमाल, गोदी, केहु के पीठ कहियों ताश के बाजी बिछा लेवेला. बोझा हलुक करे वाला कारोबार के दिनवाला ब्रांच के लोग हरमुनिया-ढोलक, कटोरी, भगवान के फोटो आ कइंची लेके आपन काम करेला. डिब्बा में कुछ लोग अइसन घुलल-मिलल रहेला कि एके परिवार के लागेला, त कुछ लोग एकदम पट्टीदार जइसन ब्यौहार करेला. बाकिर असल बात इ बा कि सफर प्रेम-प्यार से आराम से चलत रहेला.

रेल गाड़ी प चले के जौन ढंग ऊपर बतावल बा ओकरा प बिचार क के प्रोफेसर झेलकरजी के अध्यक्षता में बनल समिति कुछ बड़ा क्रांतिकारी सुझाव दिहले बिया. समिति के राय में डिब्बन के डिजाइन में कुछ बुनियादी फरक कइल जरूरी बाटे. अंतिम राह इहे बा कि डिब्बा में जगे घेरे वाला चीज सब जइसे देवाल, जंगला, छत, सीट के हटा दिहल जाव. सौचालय के त तुरते हटइला के जरूरत बा. समिती इहो कहतिया कि आरक्षण के कुप्रथा बद क के 'बर्थ' के माने ओ जगे से लिहल जाव, जेपर यात्री अपना ताकत के हिसाब से कब्जा क लेव. एकरा खातिर रेलवे चाहे त अलगे से कब्जा-सुल्क ले लेवे. समिति के बिचार बा कि रेल के चाल-चलन के हिसाब देखते इहे ठीक रही कि लोग आपन सुविधा के हिसाब से गाड़ी प चढ़े-उतरे, खाए-पिये आ मर-मैदान के इंतजाम क लेव. एकरा खातिर एतने करे के पड़ी कि स्टेसन, प्लेटफारम के बदले बस डिब्बा में जगे-जगे गाड़ी रोके वाला जंजीर लगावे के होखी. एकरा बाद बस पटरी प गाड़िये रहि जाई,, आ टिकट-फिकट के झमेलो खतम्. टीटी नामके एगो कर्मचारी रही जे डिब्बा के दुनु छोर प लागल खंभन से लटकत ट्रौली प बइठल लोगन से सीधे वसूली करी आ आपन सरधा से रेल के खजाना में जमा क दिहि.

गाड़ी में कुछ डिब्बा अइसनो होले जेमे एसी लागल होला आ लोग अकेलेहिं आपन बर्थ प सुतेला. झेलकर-समिती ई डिब्बन खातिर सुझवले बिया कि इहो खुलहे रहो, बाकिर एमे नीचे कालीन गद्दा आ मसनद होखे. हो सके त पान आ मुजरा के इंतजाम क दिहल जाव त पर्यटन-उद्योग के कल्यान हो जाई. टिकट-फिकट के झमेला एहु में ना राखल जाव, काहे कि ए डिब्बन में बेसी लोग त पास लेके चलेला.

झेलकर समिति आउरो ढेर सुझाव देहले बिया बाकिर अब हम चुप होत बानी. काहे से कि हमरो एगो सफर प निकले के बा. टिकट तत्कालो में नइखे मिलत, से उहे 'प्रतीक्षा' करत जाए के बा. ढेर काम बाकी बा- मंदिर आ मजार जाके भगवानजी से पाप खातिर माफी मांगल, वसीयत कइल, जीवन-बीमा के किस्त भरल. बाकी एगो आम हिन्दुस्तानी के सफर के सब ताम-झाम- माने ओढना-बिछौना, तीन-चार दिन लायक खाए-पीए के टोकरा, फल-दूध-पानी, दु-चार गो मोटे जासूसी किताब, ताश-शतरज, लइकन के अझुरैले राखे वाला खेलौना-सब जोगाड़े के बा. फेर भेंट होई. जै राम जी के.


नोएडा, उत्तर प्रदेश.