Manir Alam
Doha, Qatar
बचपन के खेल
मनिर आलम
याद आवेला बीतल बचपन के सब खेल.
अभी बहुत कुछ बाकी बा ए दुनिया में भेल.
रोअत रोअत कहत रहे खेले के बा खेल.
हरदम जाके खेले गांव में अपना आपन खेल.
खेलत खेलत में बबुवा के अपने टूटल टांग.
माई, बाबू रोअत कहले, हाय रे हमर जान.
तू का कइलऽ अब हमनी के सहारा हाँथ से गेल.
हरदम कहत रही कहीं ना जा के खेलऽ कोई खेल.
तू ना मनलऽ हो गइल सबे के एक साल के जेल.
तू ना जइतऽ खेले त हमनी के, नाहीं होइत जेल.
अब का करी केहू ना हमनी के सहारा भेल.
बाद में जा के हमनी के ही जीत कोर्ट से भेल.
छुट गइली सब मुसीबत से अब ना जाएब कबो जेल.
हमर बात मान तू कबो ना खेले जइहऽ अइसन खेल.
मनिर आलम,
इनरवामाल, हरनहिया, बारा, नेपाल
हाल में अभी : दोहा कातार
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