Manir Alam

Doha, Qatar

गजल

मनिर आलम

आँख रीसेला त मन के जलन मिट जाला.
दुख के आवाज मिटे त शरीर के बोझ मिट जाला.ना जाने कइसन जादू बा ए नन्हकी नन्हकी हाथन में
हमरा के छूवे ला त हमार पूरा थकान मिट जाला.बहिन क इज्जत आबरू पर कुर्बान होजाला भाई.
हवस में सब भाई के अब त बहिने मिट जाला.मजबूरी में जिनगी के रेखा बन जाला एगो पुतली.
खुशी आवेला त सब के चेहरा के दूख मिट जाला.हवो कुछ देर तक चिराग के राखेले जिन्दा करके.
ताख पर ना त चिराग के जल्दी अगन मिट जाला.गलती दू:ख के होवे चाहे, अपन रीती रिवाज के,
लेकिन सजा में काहे हरदम दुल्हन मिट जाला.फरिस्ता के शायद ई बात के एहसास तक ना होई.
कि, जादा सवाल कइला से मुर्दा के सब जलन मिट जाला.



मनिर आलम,
इनरवामाल, हरनहिया, बारा, नेपाल

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