लइकी के दहेज
 

- मनोज उपाध्याय
 

दूह लीं लइकी के बाप के
लइकी के बाप बेबस सुधवा गाय हऽ
कसाई के खूंटा में जेकर गर्दन फंसल बा
लताड़ कबहूं न मार सकी
जरसी समझ के दूहत रहीं देशीला गाय के
दूह लीं लइकी के बाप के.

नीमन बाउर बोली बोलीं
पइसा खातिर नाटक करीं
पालिटिक्‍स खेलीं
घरे ना होखे टूटहो पलानी
सगरो संसार कहीं
अपने आप के
दूह लीं लइकी के बाप के.

बरजि के थूथन बंद ना होखे पावे
मांगते रहीं- मांगते रहीं
दम मत लीं
अपना लेवे दीं
अपना लगे जवन ना होखे
जउरिआवत रहीं दोसरा से मांग- २ के
दूह लीं लइकी के बाप के.

हाय रे, लइकी के बाप
पैदा होत ही लइकी
फूट गइल नसीब जिन कर
सोचे लगले
ई कइसन सजा मिलऽता
हमरा कवना पाप के
दूहत रहीं लइकी के बाप के.

दलील खूब दीं, कहीं
हमरो त लइकी बा
आपन तो कौनो करनी नइखे
हमहूं तऽ देब
दोसरा से मांग के
दूह लीं लइकी के बाप के.

बुरबक रहलें राजा राममोहन राय, गांधी, अंबेडकर, सुभाष
जे कौनो काम के पहल कइलें
खइलें लाठी, जेल गइलें
इ रिस्क के ली
घाटा सहेब मत
मौका बा छोड़ब मत
चूसत रहेब, रहेब
अगर तबहूं न पेट भरत होखे
तऽलीं ना बना जूता हमरा चाम के
दूह लीं लइकी के बाप के.


बिहार के गोपालगंज के थावे निवासी मनोज उपाध्याय जी पेशा से इंजीनियर हईं आ रायपुर में सीसीआई में असिस्टेंट मैनेजर बानीं.