नगीना फुआ

- रश्मि सिन्हा

नगीना फुआ के त सभे केहू चीन्हे ला. आज हम रूबी भाभी के बारे में बतावऽतानी. रूबी भाभी लक्ष्मी काकी के पतोह हई. गरीब बाप के बेटी, कम दान-दहेज़ पर बियाहल. भला सास के कैसे पसंद पड़सु. एहिसे काकी उनकर बड़ी दुर्गति करस. हमनी के ओह घरी लईका रहीं जा, स्कुल आवत-जात आ असंहियो काकी के पतोह के प्रति प्रवचन अक्सराहे सुनी जा. बाकिर रूबी भाभी कभी एक सबद ना बोलस. कई हाली हमनी के कोठा पर चढ़ के देखले बानी सन भाभी के पिटात. जुलुम दिन पर दिन बढ़ले जात रहे. एक दिन हमनी के सब लईकी सन मिल के फुआ के लगे गइनी जा. हालाँकि फुआ से कवनो बात छिपल ना रहे बाकिर केहू के घरेलू मामिला में नहींए पड़े के चाहीं. बाकिर जब पानी माथा के उपर से बहे लागो त का करे के चाहीं? आ उहो तब जब केहू के जान परान के बात होखे? काहे की कुछ दिन से काकी रूबी भाभी के खानो-पीना बंद क देहले रही. ई बात कहीं छुपेला? महल्ला में खुसुर-फुसुर होखे लागल. अब फुआ से ना बर्दाश्त भइल. चहुंप गईली काकी किहाँ. फुआ ई बात त जानते रही की समुझवला के कवनो असर त पड़ी ना उल्टे बात अउर बिगड़ जाई. फुआ अपने बदनाम होखिहन से अलग. फुआ लगली काकी क सुर में सुर मिलावे.

फुआ - का हो लछमी कईसन बाडू?

काकी - का कही ए नगीना? ई पतोहिया जान ले लिहले बिया. मुअतो नइखे जे पीछा छूटो.

फुआ - काहे, का कइले बिया जे ओकरा के मुआवे में लागल बाडू?

काकी - मुआईं ना त का करीं? सुखले हाँथ झुलावत चल अइली. हमार बेटा एतना सस्ता रहे का?

अबहियों अपना बेटा के बियाह करेब नू त लाखन में नोट बटोरब. एकरा पाके हमरा का मिलल?

फुआ - बात तू एकदम ठीक कह तारू. अब ई जेतना जिनिगी लिखा के ले आइल बिया ओतना त जियबे करी, आ ओतना दिन त तहरा झेलहीं के पड़ी.

काकी - का करी हम कि एकरा से पीछा छूटे?

फुआ - एकर खाना-पीना बंद करा द.

हमनी के अवाक. फुआ ई का कहऽतारी. एक दूसरा के मुहं ताके लगनी सन. बाकिर फुआ त फुआ हई. उनका दिमाग में का चलऽता ई के जाने.

काकी- ऊ त हम कइये देले बानी.

फुआ- (बड़का गो मुहं फार के) आही ए दादा, तबो नईखे मुवत! का खिया के एकर बाप पोसले रहे एकरा के? त अब ना मुई, अउर अगर लछमी तू कहीं एकरा के जरावे-ओरावे के सोचत होखबू त भूला जइहऽ. काहे कि जिनगी भर खातिर तू हूँ जेल में जाँत पीसे चल जईबू.

काकी - त तू हीं बताव ना ए नगीना, का करी हम एकर?

फुआ - एगो काम करऽ. एकरे से काहे ना ओतना पइसा निकाल ल जेतना की एकरा बाप से खोजऽतारु. काकी - ऊ कइसे?

फुआ - देखऽ. महल्ला भर के लइकी स्कूल जाली सन. ई ओहनी के टयूशन पढ़ा दिहल करी. कमाई के कमाई आ घर में तहरा आँखी के हजुरा भी रही.

ई बात काकी के दिमाग में घुस गइल अउर ऊ तईयार हो गईली. हो गइल फुआ के मनोकामना पूरा. अब फुआ के दिमाग देखीं. जवन जवन लईकी टयूसन जाये लगली सन भाभी से पढ़े उनकर माँ के एगो जिम्मेदारी धरा अइली. आ महल्ला के सब लोग फुआ के साथे हो गइल. अब हमनी के कुछ लइकी भोर में जाईं जा अउर कुछ लइकी संझिया खन. हमरा अबहियों मन पड़ेला कि माँ टयूसन जाये क बेर दू गो परवठा अउर भुजिया देस आ कहस की पहिले भाभी के खिया दीहऽ तब पढ़ीहऽ. भाभी बेचारी हबर‍हबर खास तले हमनी का उनका कोठरी केवांडी पर चवकिदारी करी सन. जब भाभी खा लेस त पढीं सन. कहल जाला, हंसले घर बसेला. काकी कतनो प्रयास कइली बाकिर उनकर पतोह ना मरली. आजु पनरह बरिस क बादो रूबी भाभी फुआ के एतना माने ली की गोड़ो धो के पीए के तइयार. ई बात अउर बा कि जब लछमी काकी जनली त फुआ अउर मुहल्ला क लोग से बोलचाल बंद क दिहली आ हमनी के पढ़लो छूट गइल. लेकिन तब तक रूबी भाभी के घर बस गइल रहे. उनका दू गो बेटा हो गइल रहे. भइयो भाभी के समुझ गइल रहलन.

रउआ सभे त जानते बानी कि फुआ के महल्ला में केहू दुखी होखे ई फुआ से बरदास ना होला. आज फुआ के एगो छींको आवेला त रूबी भाभी सबसे पाहिले दउड़ेली.


रश्मि सिन्हा एगो सैनिक अधिकारी के पत्नी हईं आ बरिसन से भोजपुरी आ नेट से जुड़ल बानी. रश्मि सिन्हा के ब्लॉग पर उहाँ के लिखल बहुते रचना भेंटाई.