तीन गो कविता

नूरैन अंसारी,

संस्कार के दशा

निमने बतिया लोग के ख़राब लागत बा.
धतूर जइसन कडुआ गुलाब लागत बा.
करीं झूठे बड़ाई त खुश बा लोग,
साँच बोलला पर मुंह में जाब लागत बा.
बाबू माँगत बाडेन बुढऊ बाबू जी से पानी,
अब त बाप नौकर आ बेटा नवाब लागत बा.
मुंह मारी एईसन ज़माना के भाई,
जेईमें लोग के अमृत से बढ़िया शराब लागत बा.
मत पूछी त बढ़िया होई संस्कार के दशा,
बबुनी के भर देह के कपड़ा ख़राब लागत बा.
लद गईल जुग ईमानदारी के "नूरैन"
अब त पाई-पाई के भाई में हिसाब लागत बा.


दाल दुर्लभ हो गईल

लोग रखे लागल रसोई में सोना खान सम्भाल के.
कबो बन जाला हित-नात के अईला पर निकाल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.
टूटल जोड़ी दाल-भात-सब्जी के,बितल युग पुराना.
रोक ला गईल स्वाद पर आईल एईसन ज़माना.
बड़ा मुश्किल से कबो दर्शन इनकर हो जाला.
ना त धनी-मनी लोग के ही रोज इ भेटाला.
आजकल अटावल जाता घर-भर के पानी खुबे डाल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.
जहा देखअ वही जग लोग गुण दाल के गावत बा.
दाल के महिमा के आगे हर केहू सर झुकावत बा.
कहल बा की दाल के दर्शन के बिना हर भोजन बा सुना.
लेकिन दर्शन दुर्लभ हो गईल जब से दाम भईल दुगुना.
लागत बा इनाम महंगाई में इ जीत लिहेन साल के.
बढ़ गईल भाव जब से भाई हो दाल के.


लाजवाब लागे लू

कबो चम्पा, कबो चमेली, कबो गुलाब लागे लू.
नया बोतल में रखल पुराना शराब लागे लू.
अईसे त हर अदा में तू हमके निक लागे लू
मगर जब हँसे लू त तू लाजवाब लागे लू.
तहरा महक से गमकेला पतझड़ में फूलवारी,
गौर से देखला पर तू मदिरा के तालाब लागे लू.
जब केश तहार लहराला त घिर जाला बदरी,
बलखा के चले लू त नागिन के हिसाब लागे लू.
सावली सूरत, मोहनी मूरत, कोयल जइसन राग,
तू कौनो कवि के कल्पना के सुंदर किताब लागे लू.

नूरैन अंसारी
ग्राम - नवका सेमरा, पोस्ट - सेमरा बाज़ार,
जिला - गोपालगंज (बिहार)

Noorain Ansari
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