Noor Alam Badshah

Doha, Qatar

पढ़ लिख के गदहा

जवना समय में रही हम देहात,
कवि होखे खातिर दिल रहे बेताब.
जब करीं आगे बढे के प्रयास,
लोग कहे अभी काटऽ जा के घास.
सोचनी काहे ना चल जाईं उहवाँ
भोजपुरी के सेवक नइखन जहवाँ.
कुछे दिन में हो जाईब उहाँ आदमी,
सभे कही हमरा के बड़का भलादमी.
भाडा खातिर रहे ना चवन्नी अठन्नी,
घर से पैसा चोरा के पहुँचनी राजधानी.
बाप दादा के सम्पति से कइनी ऐश आराम,
कमइनी ना धमइनी, तबहूँ बा बड़का नाम.
का सुनाई, कइसे सुनाई आपन हाल,
शहरी हो गइनी, तबो बावे पहिलके चाल.
दसों साल हो गइल, तबो न सुधरल छवि.
दू चार लाइन लिखके समझेनी अपना के कवि.
एके जगे रह रह के देवेनी अंतरवार्ता,
कतना धूर्त बानी केकरो नईखे पता.
दोसर के सफलता देख के, होखेला जलन.
तबे त केहू कह देला खानदानी एकर चलन.
पढ़ लिख के लिहनी हम बड़का डिग्री.
तबो ना सुधरल चाल के सिक्री.
फूटल करम मिलल अईसन जगहा,
पढ़ लिख के हो गइनी साफे गदहा.


नूर आलम बादशाह,
मुकाम : कोतवाली ९, जमनिया बारा, नेपाल
हाल दोहा कतार से

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