भोजपुरी भाषा, दिशाबोध आ साहित्य खातिर समर्पित पत्रिका 'पाती'

भगवती प्रसाद द्विवेदी

कवनो लघु पत्रिका के पचास गो अंक निकालि लिहल, हँसी ठठ्ठा ना ह. ईहो ओईसन विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका के, जवना के ना त व्यावसायिक समर्थन होखे, ना पीठि पर कवनो संस्था भा मंच के मजबूत खम्हा होखे, आ ना कई लोगन के सामूहिक कोशिशे होखे. ओइसे आजु-काल्ह, कुछ लोग पत्रिका के आत्म-प्रचार के जरियो बना लेले बा, जवना में आपन आ अपना मंडली सहित पूरा परिवार के गलीज खलास कके आत्मरति के पगुरी कइल जा रहल बा. समरथ के ना दोष गोसाईं. बाकिर एह से अलगा हटिके, साहित्यिक पत्रकारिता के हलका में मील के पाथर गाड़ल, सभका बेंवत-बूता के बात ना होला. प्रगतिशील चेतना के वाहक 'पाती' के ई सोनहुला अंक एही दिसाईं सोच-विचारे खातिर लाचार करत बा.

चूँकि हम शुरूआतिये दौर से 'पाती' के प्रकाशन के साखी रहल बानीं, एह से एकरा बाबत, अपना आँतर के बात लिखल आपन दायित्व बूझत बानीं. सन् १९७९ में जब एह पत्रिका के निकाले के योजना बनल रहे, त ओकरा पाछा खास तौर से चारि गो मकसद रहे

१. भोजपुरी में लिखेवाला प्रतिभा आ संभावना से भरल दमदार नवहा रचनाकारन के रचना के तरजीह दिहल.

२. विचारशीलता, समकालीनता आ आधुनिकता से जोड़ि के स्तरीय साहित्य प्रकाशन से विश्वविद्यालय में भोजपुरी के प्रतिष्ठित कइल.

३. देश-दुनिया के अउर भाषा के साहित्य के समानान्तर, भोजपुरी साहित्य के विभिन्न विधन के मानक रचनन के प्रकाशित कइल.

४. लोकसंस्कृति के संरक्षण अउर परम्परा-आधुनिकता के बीच सेतुबद्धता.

पहिले पत्रिका के आकार में छपे वाली पाती मुख्य रूप से कथा प्रधान पत्रिका रहे आ ओही रूप में दू साले लें (१९७९ से १९८० तक ) एकर चार गो अंक छपल. ओकरा बाद पत्रिका के प्रकाशन स्थगित हो गइल. ओह घरी संपादक डा॰ अशोक द्विवेदी बेरोजगारी आ चउतरफा संघर्ष से जूझत रहलन. बाकिर उन्हुका संपादकीय कौशल आ तेवर का चलते चारिए गो अंक से, पत्रिका के लीक से अलगा हटि के चले के, पहिचान बनि गइल रहे. नतीजा ई भइल कि साहित्यकारन के तगादा आ रचना आइल बन्न ना भइल आ लमहर अंतराल का बाद दोबारा शुरूआत भइल त अउर तल्ख तेवर, विचारपरकता आ पोढ़ता से लैस होके. जरत-बरत देश- दुनिया आ संस्कृति का मुद्दन पर धारदार संपादकीय आवे लागल. अइसन-अइसन विषयन पर विशेषांक अइलन स, जवन भोजपुरी खातिर एकदम टटका अउर अनछुअल रहलन स. नतीजतन, गम्हीर साहित्य के पढ़निहारन-जोगवानिहारन खातिर 'पाती' एगो जरूरी पत्रिका बनि गइलि.

भोजपुरी में 'पाती' अइसन पहिल पत्रिका रहे, जवन 'मीडिया' पर विशेषांक प्रकाशित कइलस. ओह अंक में ना खाली इलेक्ट्रानिक आ 'प्रिन्ट मीडिया' पर गहिर गम्हीर आ विचारोत्तेजक आलेख छपलन स, बलुक ओही पर केन्द्रित यादगार कहानियो प्रकाशित भइली स. लोकसंस्कृति पर अइसने एगो दमदार विशेषाकं निकलल. भोजपुरी आलोचना के दशा दिशा आ भूमिका पर एगो महत्वपूर्ण अंक पातिए छपले रहे. 'भोजपुरी कविता' पर यादगार अंक आइल, त भोजपुरी 'गजलो' पर सहेजि के राखे जोग विशेषांक प्रकाशित भइल. 'भोजपुरी एकांकी' पर 'पाती' के खअस अंक छपल. भोजपुरी में 'बाल साहित्य' के कमी आ जरूरत के मद्देनजर 'पाती' बाल विशेषांक के प्रकाशन का दिसाईं पहल कइलस. 'लोक संस्कति आ लोक साहित्य' केन्द्रित अंक के एगो अलगे महत्व रहे. 'मोती बी॰ए॰' पर केन्द्रित अंक लाजवाब आ संग्रहणीय रहे.

ओइसे त 'पाती' के हर अंक खास अंक होला, बाकिर एकर कुछ स्तम्भ पढ़निहारन गुननिहारन के विशेष रूप से धियान खिंचलन स. 'खास कवि' स्तम्भ के तहत समीक्षात्मक टिप्पणी का साथ एगो लब्ध प्रतिष्ठित आ एगो नवकी पीढ़ी के रचनाकार के चुनिन्दा रचनन का सँगे प्रस्तुति रेघरियावे जाए जोग डेग रहे. 'लोकराग' के नया अन्दाज में 'पाती खाली परोसबे ना कइलस, बलुक अउर पत्रिकन में एह तरह के शुरूआत करे खातिर प्रेरित कइलस. लोकधुन आ लोकछन्दन में आजु के समय संदर्भ से जुड़ि के रचाइल 'लोकराग' के रचना ना खाली पढ़निहारन के अभिभूत कइलस, बलुक फूहर आ अश्लील गायकी करेवालन के मुँह पर जोरदार तमाचो रहे. भोजपुरी के साहित्यिक पत्रकारिता में नया राह आ रोसनी देखावे में 'पाती' के ऐतिहासिक महत्व बा.

'पाती' कई गो रचनिहारन के, जे नवोदित आ अचर्चित रहे, पत्रिका के मार्फत चर्चा में ले आइलि आ रचनाशिलता के मुख्य धारा से जोड़लस. इहे ना, भोजपुरी क्षेत्र के हिन्दी लेखक, कवि कथाकारन के भी उकसाइके, भोजपुरी में स्तरीय साहित्य सिरजन करावेमें 'पाती' के भूमिका महत्वपूर्ण रहे.पत्रिका के ई उतजोग खास तौर से रेघरियावे जोग रहल. 'पाती' में जनपदीय रचनाकारन के, अलगा अलगा अंकन में, रचनात्मक प्रस्तुति एगो सराहे जोग डेग रहल बा. एह दिसाई 'बलिया के कवियन पर केन्द्रित' अंक विशेष रूप से रेघरियावे जोग बा. इहो बात निःसंकोच कहल जा सकेला कि आजु बलियामें भोजपुरी सिरजनशीलता का प्रति जवन सकारात्मक आ प्रेरणादायी माहौल बनल बा, ओकरा मूल मं 'पाती' आ एकरा संपादक के अगुवाई के अगहर भूमिका रहल बा.

पत्रिका के स्तरीय आ समकालीनता के दिसाईं, एगो टिटिहरी अस संपादक के कवनो जोड़ नइखे, जे अपना बल बेंवत आ संघर्षशीलता के बदउलत, अकेलहीं भोजपरी साहितायकाश के उठवले ललकारि रहल बा. नवहा रचनिहारन के ढूँढ़ि ढूँढ़ि के अँकवार भेंट करे के ललक, बाकिर कमजोर रचनन का संगे कवनो समझौता ना. एक एक रचना के माँजे आ चमकावे खातिर हम संपादक के लवसान होत देखले बानीं. इहे ओजह रहे कि साहित्य अकादमी के पत्रिका 'इंडियन लिटरेचर' के १६५वाँ अंक जब भोजपुरी पर केन्द्रित होके निकलल, त ओह मरं कई गो रचना 'पाती' से उद्धृत आ अणुदित होके छपली स.

पारिवारिक विरोध आ जुझारू जिनिगी के बावजूड 'पाती' के पचास गो अंक छपि सकल त खाली संपादक के जीवटता, जिजिविषा आ समर्पण भाव का कारन. ई त इहे साबित करत बा कि एकहीं चना अगर चाहे त भाड़ि फोरि सकेला, बशर्ते कि अशोक द्विवेदी जी नियर इच्छाशक्ति आ सृजनात्मक दमख होखे. बिसवास बा, ई सिलसिला अर्द्धशतके ले ना थम्ही, शतके ले त जरूरे पहुँची. 'पाती' पत्रिका के जान होला एकर संपादकीय, जवन सहजे विचारोत्तेजकता आ जीवंतता से भरि देला.

भोजपुरी साहित्य, भाषा, संस्कृति आ समाज पर, एकरा दशा दिशा आ उठान पर, शोधार्थी लोगन के 'पाती' के अंकन पर शोध करे खातिर आगा आवे के चाहीं.


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१