Shailesh Mishra

Texas, USA

एगो भोजपुरी कविता

शैलेश मिश्र


कहवां खोजीं जीभिया के लाली,
कहवां से ले आईं चूना कत्था,
कहवां अब चबाईं कच कच पनवा,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां खोजीं खेतन के हरियाली,
कहवां से गेहूं के बोरा भराईं,
कहवां अब चक्की पर आटा पिसवाईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां कागज के नाइ तैरायीं,
कहवां से पतंग छत पर उड़ाईं,
कहवां लुका छिपी में दिनवा बिताईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां पानी के गगरा भरवाईं,
कहवां गरमी में नलवा चलाईं,
कहवां अब कुईंया के झांके जाईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां हंसुआ से तरकारी काटीं,
कहवां सूप से भूसी अलगाईं,
कहवां जाइके चेका से आमवा गिराईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां मटका से माखन चुराईं,
कहवां पर मालपुआ गबगब खाईं,
कहवां अब रसदार ऊख चबाईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां घोड़ा गाड़ी से सैर कराईं,
कहवां गोईंठा पर खाना पकाईं,
कहवां जाके पनिहारिन के सताईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां लुटकी बाबा के रामलीला देखीं,
कहवां पर बइठ के नउटंकी जमाईं,
कहवां अब नचनिया से भीड़ जुटाईं.
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां गंगा में डुबकी लगाईं,
कहवा संझिया के अंगना भींजाईं,
कहवां अब पलानी के छाया पाईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


कहवां देशी घी के रोटी खाईं,
कहवां माटी के खूशबू पाईं,
कहवां आपन देश के झंडा लहराईं,
हम तऽ पराया हो गईनी बिदेसिया.


शैलेश कुमार मिश्रा,
डलास, टेक्सास, अमेरिका
शैलेश मिश्र के सगरी रचना ऊहाँ के निजी ब्लॉग पर भी मौजूद मिली.