मुंबई का ठग :: भाषा के नाम पर देश के मत ठग रे, रजुवा !

शैलेश मिश्र

[एक वास्तविक-काल्पनिक कहानी]

जब बात भाषा के विविधता पर आवेला, त शायद दुए गो देश बा, भारत आ अमेरिका, जहँवाँ अनेक भाषा बोलेवाला हर किसिम के प्राणी, आपन-आपन मतभेद के बावजूद, एक-जुट होके रहेला. एकर नतीजा ई होला कि हर भाषा के अच्छाई अइसन समाज के जड़ में संवेदनशीलता के बीज बोवेला. अलग-अलग प्रांत के लोग आपन ढंग से समाज के चादर पर रंग चढावेला. रंग से फगुवा याद आ गईल -- रंग गुलाबी होला, रंग नीला-पीला होला, रंग से हँसी-खुशी के माहौल बनेला, रंग से जिनगी रंगीन लागेला. होली के त्यौहार पर बिना जाती-भाषा-प्रांत आ अन्तर देखले, लोग एक दूसरा से रंग खेलेला. अब रंग के दुरुपयोग भी हो सकेला -- करिया रंग से कोरा कुर्ता पर करिखा लाग सकेला. पक्का रंग जल्दी ना छुटेला. लाल रंग से गुस्सा चढेला, खून याद आवेला आ खून के नदी बहावेवाला जुल्मी नेता लोग आँख के सामने आ जाला. अइसने खून के होली बहल जब एगो जिद्दी लईका झुट्ठे मराठी भाषा के नाम पर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश आ बिहार के बीच टकराव पैदा कैलस. ई नासमझ, नादान, निर्मोही, नाबालिग़, नरियर के खोपड़ी जईसन भेजा में भूसा भरल, खरबूजा जैसन रंग बदलेवाला, खलनायक नेता के नाम हs - रजुवा, जे आजुवो भाषा के नाम पर देश के ठग रहल बा.

चलीं तनी फ्लैश-बैक कईल जाव. १९६० में किशोर कुमार के एगो बहुत हिट पिक्चर रिलीज़ भइल रहे - दिल्ली का ठग. आज ऊ फ़िल्म के रीमेक बनी त ओकर टाइटल होखी - मुंबई का ठग. बलुक पिक्चर के सही मतलब तब बैठी जब शीर्षक होखे - इंडिया का ठग. कहल जाला कि पुर्बज के माटी के भुलावल ना जाला. लेकिन रजुवा के दादा मध्य प्रदेश से महाराष्ट्र आइके बस गइलन. पेट के आग आ परिवार के बेदाग़ बचावे के परे त केहू भी आपन माटी के मोह तूर के परदेस पहुँच जाला. दुई-टका के नौकरी, चार-आना के चाकरी से शुरुआत करेवाला आम आदमी, आगे चलके आठ-आना के आम, सोलह आना के सिंगार भी खरीद लेला. लेकिन कभी ना भुलायेके चाहीं आपन औकात. काहें से कि समय कभी एक जैसन ना रहेला. कभी गाड़ी नाव पर, त कभी नाव गाड़ी पर होते रहेला. "मुंबई के ठग" के नया कहानी के माडर्न प्लाट में ई भईल कि पैसा आ ताकत के गद्दी पर पलल रजुवा आपन औकात भुला गईल. घमंड के चोटी पर बैठके ओकरा ई लागे कि मुंबई के रखवाला उहे बा. मुंबई केहुके बाप के बपौती त ह ना कि जब मन चाहे चुनौटी के खैनी-तम्बाकू जैसन पीट के ओंठावा में कस लीं आ मुहवाँ से थूँक दीं. जब आपन लंगोट के ठेकान नइखे त दोसरा के का कम्बल ओढाईब ? रजुवा त अपने में चूर रहे.

अमेरिका आ इंडिया दुनो में डेमोक्रेसी बा लेकिन एगो बहुत आम अन्तर बा. अमेरिका में कूड़ा-करकट जहाँ-तहाँ ना फेंक सकेनी आ सड़क-रास्ता पर थूकत केहू के ना पायिब. लेकिन मुंबई त इंडिया में बा. मुंबई में डॉन के इलाका कवनो जंगल से कम नइखे. रजुवा जंगल के राजा समझ के प्रजा के सतावे लागल. ओके ई लागे कि जंगल पर आपन काबू पावेके एके उपाय बा - जंगल में बसल सब जीउ-जानवर से अपने भाषा में बोलावे के कोशिस कईलस. औरी त औरी -- दूसरा जंगल से आईल जीउ जंतु के भी बोल देलस कि हमार जंगल से निकल जा लोगन. ओकर जंगल में खाली उहे रही जे ओकर बोली-भासा बतियावे. रजुवा ई भुला गईल कि दूसरा जंगल से आईल जीउ-जंतु ही बंजर, घास-फूस पनपल जमीन में जंगल बसावे में ओकर मदद कईलस. जंगल त सबके बा -- एहमे बोली के आधार पर बंटवारा कैसे हो सकेला ? जब जंगल में रहेवाला जंतु एहपर ध्यान न देलसन, त रजुवा गुस्सा गईल. जंगल में मंगल ओकरा बरदास ना भईल. आपन चमचा-गीदड़न के भेजके करवा देलस जंगल में दंगल. "मुंबई के ठग" फ़िल्म के कहानी में सब बा - खेत, मूली-गाजर, जंगल के नया निर्माण करेवाला गीदड़-सेना, बेसहारा जीउ-जंतुअन पर अत्याचार आ ओकनी के बदला के सीन भी बा. धर्मेन्द्र के पिक्चरन से लिहल एगो फेमस डैलोग भी बा - "कुत्ते ! मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगा !!"

आत्म-सम्मान बहुत बड़ा चीज़ होला. कहल जाला कि जब आत्म-सम्मान जाग जाए, त डाकू भी महात्मा बन जाला. केतना लोग त मर्यादा बचावे खातिर दूसरा के गला भी घोंट देला, पैसा के भी चिंता-फिकिर ना करेला. जब कुकुर केहू के गोड पर मूत देला, त ओकर आत्म-सम्मान के भी ठेस पहुंचेला. रजुवा के आत्म-सम्मान के जबले ठेस ना पहुँची, तब ले ऊ बक-बक करते रही. रजुवा के लागल कि बाहार से आईल प्राणी ओकर जंगल में गंदगी फैलौलस , एहसे सबके खदेडे के चक्कर में चिललैलस- चिखलस. नतीजा ई भईल कि रजुवा के आपन कवनो दोष ना नज़र आईल. भगोना में दूध ज्यादा उबल जाय, त ऊ उफन के बाहर गिर जाला. अधजल गगरी छलकत जाय, रजुवा के बात समझ में ना आय. हर फ़िल्म के स्टोरी के निष्कर्ष होला. कमान से छोड़ल तीर कभी-कभी पलट के आवेला. रजुवा त रजुवा रह गईल, उल्टा दोसर जगह से आईल जीउ-जंतुअन के आत्म-सम्मान जाग गईल. रजुवा के जंगल अनाथ हो गईल आ तनी दूरी पर नया जंगल बस गईल.

अमेरिका में ५० स्टेट्स बा -- सबके मिला-जुला के युनईटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बन गईल. इंडिया में २८ राज्य बा औरी ७ यूनियन प्रांत बा. अनेकता में एकता - दुनो देश के बल एहिमे बा. बोली-भासा के आधार पर जमीन के साथे समाज के भी बँटवारा होखे लगे, त देश डूब जाई. फ़िल्म के इहे मेसेज बा कि दोसरा के भलाई ना कर सकीं, त दोसरा के अहित भी मत करीं. "मुंबई का ठग" फ़िल्म देखला के बाद दर्शक एके वाक्य में आपन रिएक्शन बतवलन - "भाषा के नाम पर देश के मत ठग रे, रजुवा !"


कहानी-निर्देशक,

शैलेश मिश्र
डैलस, टैक्सस, अमेरिका
२२ अगस्त २००८

चेन्नई में जनमल शैलेश मिश्र हिन्दी आ भोजपुरी भाषा के लेखक कवि हउवन; भोजपुरी असोसिएशन ऑफ़ नॉर्थ अमेरिका के संस्थापक आ अध्यक्ष हउवन; भोजपुरी के प्रसिद्ध सोशल नेटवर्क - भोजपुरीएक्सप्रेस.कॉम के सृजनकर्ता हउवन. लेखक मूलतः बलिया जिला के डांगरबाद गाँव से जुड़ल बाड़े आ आजुकाल्ह अमेरिका के डैलस शहर (टेक्सास) में कंप्यूटर सॉफ्टवेर इंजिनियर बाड़े. ई-मेल संपर्क : smishra@gmail.com