असहमति के स्वर

‍अभयकृष्ण त्रिपाठी

संपादकजी नमस्कार,

कई दिना से अंजोरिया पर छपल एगो लेख के बारे में कुछ कहे चाहत रहीँ बाकिर समयाभाव से मजबूर रहीं. वईसे ई लेख कहीं अउर भी देख चुकल बानी बाकि ऊहाँ पर प्रतिक्रया उचित ना लागल काहे से कि जेकर लेख ओही के साइट. बाकिर अँजोरिया के एक सामाजिक मंच होखला से ईहँवा लिखे से मन के ना रोक पवनी. अब आपके उचित लगे तबहीं प्रकाशित करेब.

भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी : अंग्रेजी

जादे पढ़ल लिखल नईखी बाकि हमरा एह लेख से ई नईखे बुझात कि लेखक कवना भोजपुरियन का बारे में बात कर रहल बाड़े. काहे से कि हमरा जानकारी में कम से कम सत्तर फीसदी भोजपुरिया लोग अइसना जगह से रोजी रोटी के जुगाड़ करेला जहँवा अंगरेजी के कवनो दरकारे नइखे. एकरा में खेतिहर, मजदूर, रिक्शावाला, निचला तबका के कामकाज, आ कवनो आफिस में आम नौकरी. अइसना लोग खातिर ना त अंगरेजी के कवनो मतलब बा ना ओह लोग का पास अंगरेजी सीखे के समय बा. बाँचल तीस फीसदी भोजपुरिया लोग में भी कम से कम आधा लोग अइसना जगह पर बा जहँवा अंगरेजी के जरुरत हो सकेला बाकिर अंगरेजी ना अइला चाहे कम अइला से कवनो परेशानी ना होखे. अइसना लोग में भोजपुरिया साहित्यकार लोग, उच्च पदवी आ उच्च व्यावसायिक पद वाला लोग, जिनकर पढ़ाई लिखाई के माध्यम अंगरेजिये बा, भा सरकारी पद वाला लोगन के गिनती कईल जा सकल जाला.

बाकी बचल पन्द्रह फीसदी लोग. हमरा भोजपुरिया जमीनी हकीकत के जानकारी का अनुसार एकरा में बिल्कुल बेकार लोग, चाहे माई बाबू के पइसा के बल (डोनेशन) के बल पर ऊँच डिग्री धारक लोग बा. अइसना लोग में कुछ लोग के डिग्री दिहल पढ़ाई वाला संस्थान के मजबूरीओ होला आ अइसना लोग में ज्यादातर लोग के असल मकसद सिर्फ अउर सिर्फ डिग्री पावल होला. एह लोग के अंगरेजी से ओतने मतलब होला जेतना कि डिग्री पावे खातिर जरुरी होखेला.

एतना बात में ई बात पर खास ध्यान देबे के बा कि मरद मेहरारु के बराबरी के जनसंख्या के आधार पर हम अपना आँकलन मे मेहरारू लोग के शामिल ना कइले बानी. काहे से कि ५० टका ना सही लेकिन ४० टका भोजपुरिया मेहरारु लोग सिर्फ घर के काम में व्यस्त रहेली जा.

लेख के रचनाकार लेख में कवना भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े ई बात लेख पढ़ के समझ में नईखे आवत. हमार ई लेख के प्रतिक्रया देबे के पीछे के मंशा सिर्फ एतने बा कि एगो भोजपुरिया साहित्य अउर समाज के दर्पण के दावा करे वाला साईट के मालिक अउर भोजपुरिया समाज अउर संस्कृति के आगा बढ़ावे के दावा करे वाला लेखक के कलम से अइसन रचना हमरा हजम ना भइल. हम ई लेख के एक लाइन लिख के भी विरोध कर सकत रहीं बाकि एतना गूढ़ विषय के विरोध करे खातिर जवन कारण देबे के चाही ओकरा समर्थन में हम जेतना बात लिख सकत रहीं लिख देले बानी. बाकि यदि संपादक जी अपना तरफ से कुछ जोड़े चाहें त हमरा के रउआ बुद्धि पर पूरा भरोसा बा. यदि पता चल जाव कि रचनाकार महोदय कवन भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े त शायद हमहूँ कुछ अउर जमीनी हकीकत के सच्चाई सामने लिया सकीं.


त्रिपाठी जी के लेख हम बिना काट छाँट के प्रकाशित कर रहल बानी. अँजोरिया में प्रकाशित हर लेख से हमार सहमत होखल जरुरी नइखे. अँजोरिया संपादक के दायित्व निभावत हमार पूरा कोशिश रहेला कि हर तरह के लोगन के विचार सामने ले आवल जा सके. व्यक्तिगत छीँटाकशी केहू के शोभा ना देव, से हर केहू के चाहीं कि दोसरा के विचार के सम्मान देव आ आपन विरोध प्रकट करे. सम्मान दिहला आ स्वीकृति दिहला में अन्तर होखेला. रउरो आपन विचार लिख भेजीं त ओकरो के प्रकाशित करे में हमरा खुशी होखी बाकिर सब केहू से निहोरा बा कि सामाजिक बहस के सीमा रेखा मत लाँघी. गाली गलौज आ व्यक्तिगत जीवन पर कवनो तरह के टिप्पणी वाला लेख ना प्रकाशित कइल जा सके.
सम्पादक, अँजोरिया