रमेसर काका कहने कि ...

आजु सबेरवें-सबेरवें का देखतानी कि रमेसर काका नहा-धो के हाथे में पूजा के डोलची ले के शिवथाने जा रहल बाने. उनकरी मुँहे में से बार-बार नमः शिवाय, नमः शिवाय निकल रहल बा. काका के ई रूप देखि के त हमार नीचे के परान नीचे अउर ऊपर के ऊपरे रहि गइल. हम थूक घोंटि के टोकि देहनीं - "काका आजु का बाति ह? आजु सूरूज भगवान केने से निकलल बाने? तू अउरी पूजा! ई बाति हमरा हजम नइखे होत."

दरअसल रमेसर काका फक्कड़ सोभाव के मनई हउअन अउरी केहू उनके कब्बो कवनो देवी-देवता की असथाने मुड़ी पटकत नइखे देखले. सबेरवें उठते जवन आदमी बिना नहइले-धोवले एक थरिया चढ़ा ली अउर खेते की ओर निकल जाई, आल्हा चाहें बिरहा सुने के होखे, चाहें नाच-नौटंकी देखे के होखे त जवन आदमी एकदम अगवें जा के जगहि छेंका ली, बाकि अगर कवनो धरम-करम के बाति रही ऊ आदमी कही कि बबुनवा, नीक रही करम त का करीहें बर्हम? अब रउवें बताईं कि अगर अइसन आदमी शिवनाम के उच्चारन करत शिवथाने जा ता त केकरा ना अचंभा होई?

खैर, रमेसर काका हमार बाति सुनि के खाली मुस्किअइने अउर बिना कवनो जबाब देहले शिवथाने की ओर बढ़ गइने. एन्ने हमहूँ अपनी काम-धाम में लागि गउवीं. हाँ अउर एक बात अउर बता दीं कि काका के शिवथाने जात खाली हमहीं ना जे-जे भी देखुवे सबका थूक ना घोंटवुए.

शिवथाने पहुँचि के पूजा कइले क बाद रमेसर काका सबके परसाद बाँटत चलल रहुअन. ईहो अचंभा के बाति धीरे-धीरे पूरा गाँव में फइल गइल रहुए अउर दस बीस आदमी खुसुर-पुसुर करत उनकी पीछे-पीछे चलल रहुए.

काका जब हमरी दुआरे पर पहुँचलन त हाँक लगउअन, "ए जुगानी! कहाँ बाड़ऽ हो? आवऽ, तूँ हूँ परसादी ले लऽ." काका के हाँक सुनि के हम घर में से बाहर निकलुवीं अउरी परसादी लेहले क बाद एगो खटिया लिया के बिछा देहुवीं अउर काका से कहुँवी कि बइठऽ.

हमरी खटिया बिछवते काका त हमरी मन के बाति भाँपि गउअन कि हम काहें उनके बइठावतानी. खटिया पर बइठते उ हँसुअन अउर कहुअन, "बेटवा जुगानी! दरअसल जवन महुआ चैनल पर सुर-संग्राम के परोगराम आवत रहल हऽ ओकर नतीजा आ गइल बा अउर ए में सबसे बड़हन खुशी के बाति ई बा कि ए में हर एक भोजपुरिया के जीत भइल बा. ई जीत पूरा भोजपुरिया समाज के बा ना कि खाली यूपी भा बिहार के." ई पूरा बाति काका एक्के साँस में कहि गउअन. एकरी बादो काका आगे कहल जारी रखुअन, "काल्हि 6 नवंबर के जवन सुर-संग्राम क फाइनल में जीतल प्रतियोगी के घोषणा पटना में भइल उ भोजपुरिया समाज के सिर ऊँचा क देहलसि. दरअसल व्यावसायिकता के नजरि में रखि के जवन ई सुर-संग्राम दु राज्यन के बीच शुरु कइल गइल रहल हऽ, ई अंदरे-अंदर मनमोटाव पैदा करत रहल हऽ. हँ भाई, हमरा त ई बुझात रहल ह कि एगो लमहर खाई खोना गइल बा. अगर इ परोगराम भले सुर-संग्राम रहित पर यूपी अउर बिहार के बीच में ना होके गायकन के बीच में रहित भले उ कवनो राज्य के रहतें कुल्हि. बाकिर एके राज्यन क बीच प्रचारित ना कइल गइल रहित त केतना अच्छा रहित. काँहे कि ए तरह की प्रोग्रामन में संगीत के जीत ना होला, अच्छा गायकन के जीत ना होला बलकि छेत्रवाद आदि की चक्कर में कबो-कबो ओनइस, बीस पर इकइस परि जाला. ई कहावत त सुनलहीं होखबऽ कि मुर्हाइलो हँसुआ अपनिए ओर खींचेला."

रमेसर काका के बाति सुनि के कलेक्टराइन काकी कहली कि चलीं अच्छा भइल कि कम से कम भगवान महुआ टीवीवालन के सद्बुद्धि त देहने. जवने क चलते ई जोड़ बराबरी पर छूटल अउर दुनु प्रतिभागियन क साथे-साथे यूपी अउर बिहार के लाज रहि गइल. अउर साथे-साथे पूरा भोजपुरिया समाज के.

कलेक्टराइन काकी क चुप होखते रमेसर काका आगे कहल शूरु कइने की ई कार्यक्रम में आपन लालू यादव, रामविलास पासवान अउर साथे-साथे नंदकिशोर यादवो पहुँचल रहने. भोजपुरिया मानस क सामने खूब नाच-गाना पेश कइल गइल. भोजपुरिया बिना हुर्दंगई कइले खूब आनंद लिहलें.

अंत में काका कहुने कि हम महुआ टीवी (चैनल) क मालिक, एगो सच्चा भोजपुरिया तिवारी बाबा क सूझ-बूझ अउर विद्वता क आगे नतमस्तक बानी जवने क वजह से यूपी आ बिहार क बीच के खाई खोनइले का पहिलहीं पाटि गइल.

काका आगे कहने कि एही खुशी में आजु हम शिवथाने गइल रहनी हँ. काँहे कि एह सुर-संग्राम में अगर मोहन बाबू, चाहें आलोक बाबू में से केहू एगो क जीतले के घोषणा भइल रहित त भले ना हारित यूपी चाहें बिहार बाकिर एगो सच्चा भोजपुरिया के हारि जरूर हो गइल रहित.

एकरी बाद जय भोजपुरी, जय महुआ टीवी अउर जय भोजपुरिया समाज कहत रमेसर काका उठि के अपनी घर कि ओर चलि देहने.

- प्रभाकर पाण्डेय
आई.आई.टी. मुंबई


एह लेख में प्रकट विचार से संपादक के सहमति नइखे. प्रतियोगिता दू आदमी भा दू गो दल में होते रहेला. भारत पाकिस्तान का बीच के मैच युद्ध का तरह देखे के भावना गलत हऽ. खेल के खेल भावना से लेबे के चाहीं आ प्रतियोगिता के प्रतियोगिता के भावना से. एक के जीत दोसरका के हार ना होला. आजु जे जीतल बा काल्हु हार सकेला, आजु जे हारल बा काल्हु जीत सकेला. सुरसंग्राम के यूपी आ बिहार के बीच युद्ध का तरह देखे का पाछा शायद एह कार्यक्रम के नामो एगो कारण बा. एह लेख के प्रकाशन एह कारण से कइल जा रहल बा कि ई लेख बहुत सारे लोग के विचारन के अभीव्यक्ति का रुप में बा. आ असहमति बतावल विरोध कइल ना होला.

- संपादक, अँजोरिया.