भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के नयका अंक आजुवे हमरा मिलल हऽ. पाती का साथे अतना पुरान नाता हऽ कि ओकरा के अनठियावल हमरा ला कतई संभव नइखे. एहसे हमेशा का तरह पाती के सितंबर 2024 अंक परोसत खुशी हो रहल बा.
साथ ही एही अंक से पाती संपादक डॉ अशोक द्विवेदी जी के दू गो कविता एहिजा दे रहल बानी.
दू गो कविता
– डॉ अशोक द्विवेदी
(एक)
हँसी-रोवाई, सुख-दुख आई।
धिरहीं-धीरे साँच बुझाई
सुघर पाँव, बिहँसे-चिकनाई
बिछिलल गोड़ त सरबस जाई!
परया-पीर कहाँ ऊ बूझी
जेकरे पाँव न फटल बिवाई।
काँच घाव, हरकल मन अइसे
जस पलकन से दूर उँघाई।
जतिगँव का हदरा-हुदुरी में
आरक्षित के दूध-मलाई।
दुनियाँ सिकुर गइल ‘अपने’ में
कहीं सेर बा कहीं सवाई।
ना जाने कब ऊ दिन आई
जहिया सभके न्याय भेंटाई?
हमहन के बिधि रचलन उल्टे,
खटत-खटत हो जाय खराई!
(दू)
नेह-छोह रस-पागल बोली।
गइल गाँव के हँसी-ठिठोली।
घर-घर मंगल बाँटे वाली
उड़ल कहीं चिरइन के टोली!
सुधियन में ‘अजिया’ उभरेली..
जतने मयगर ओतने भोली।
सपना, साध, हकासल ममता-
माई के रहि गइल खटोली।
दइब क लीला-दीठि निराली
दुख-सुख खेलें आँख-मिचोली।
हिलल पात, पीपर-मन डोलल..
पुरुआ रुकल त पछुआ डोली।
आपन-आपन महता बाटे
का माटी का चन्नन रोली।
पँवरी नेह क दरिया ऊहे-
जे हियरा के बान्हल खोली।
आपन-आन न चीन्ही रस्ता
जे जाई, ओकरे सँग होली।