-(स्व॰) हीरा डोम
हमनी के राति दिन दुखवा भोगत बानी
हमनी के सहेबे से मिनती सुनाइबि
हमनी के दुख भगवनवो न देखता जे
हमनी के कब से कलेसवा उठाइबि
पदरी सहेब के कचहरी मे जाइबि जा
बेधरम होके रंगरेज बनि जाइबि
हाय राम! धरम न छोड़त बनता बा जे
बेधरम होक कइसे मुँहवा देखइबि।।1।।
खभंवा के फारि पहलाद के बँचवले जे
ग्राह के मुँह से गजराज के बँचवले
धोती जुरजोधना के भइया छोरत रहे
परगट होके तहाँ कपड़ा बढ़वले
मरले खनवा के पलले भभिखना के
कानी अँगुरी पे धके पथरा उठवले
कहवाँ सुतल बाटे सुनत न बाटे अब
डोम जानि हमनी के छुए से डेरइले।।2।।
हमनी के राति दिन मेहनत करीले जा
दुइगो रूपयवा दरमहा में पाइबि
ठकुरे जे सुख से त घर में सुतल बानी
हमनी के जोति-जोति खेतिया कमाइबि
हकिमे के लसकरि उतराल बानी जे
त अइओं बेगरिया में पकरल जाइबि
मुँह बान्हि ऐसन नोकरिया करत बानी
ई कुलि खबरि सरकार के सुनाइबे।।3।।
बभने के लेेखे हम भिखिया न माँगब जा
ठकुरे के लेखे नहिं लउरी चलाइबि
सहुआ के लेखे नहिं डोड़ी हम मारबजा
अहिरा के लेखे नहिं गइया चोराइबि
भँटऊ के लेखे न कबित हम जोरब जा
पगड़ी न बान्हि के कचहरी में जाइबि
अपना पसीनवा के पइसा कमाइबि जा
घर भर मिलि-जुली बाँटी-चोटि खाइबि।।4।।
हड़वा मसुइया के देहियाँ ह हमनी के
ओकरे के देहिया बभनओ के बानी
ओकरा के घरे-घरे पुजवा होखत बा जे
सारे इलकवा भइलें जजमानी
हमनी के इनरा के निगिचे न जाइले जा
पाँके में से भरि-भरि पिअतानी पानी
पनही से पिटि-पिटि हाथ गोड़ तुड़ि देले
हमनी के एतनी काही के हलकानी?।।5।।
(भोजपुरी जिन्दगी पत्रिका के अगस्त 14 का अंक से)
Ketna nik likhale badan.
हीरा डोम के लिखल ई कविता सितम्बर 1914 में तब के हिन्दी पत्रिका “सरस्वती” में छपल रहे जवना के संपादक रहीं महावीर प्रसाद द्विवेदी.
सौ साल पहिले लिखल हीरा डोम के एह कविता में तब के दरद झलकत बा जवन कहीं त आजुओ जिन्दा बा हमनी का समाज में. मानीं चाहे मत बाकिर कवनो समाज के मठाधीशे ओह समाज के गिरावट आ टूट के कारण बनेलें. दुर्भाग्य से भोजपुरी साहित्य का प्रकाशन में बहुत कुछ अइसन होखत बा जवना चलते भोजपुरिओ में दलित आ पिछड़ा साहित्य आ साहित्यकारन के एगो नया गोल बन गइल बा. एह बाति ला ई लोग जिम्मेदार नइखे जे ई नयका गोल बनवले बा, एकरा बदे उ लोग जिम्मेदार बा जिनका चलते एह तरह के गोल बनावे के मजबूरी पैदा भइल.
बाकिर सब कुछ का बावजूद हम चाहब, निहोरा करब, गोड़धरिया करब कि भोजपुरी के अलगा अलगा खाँचा में मत डाली सभे. भोजपुरी के हालत अइसन नइखे जे एह तरह के झटका बरदाश्त क पाई. प्रकाशक संपादक लोगो से कहल चाहब कि अपना अपना प्रकाशन में सभका के जगहा दीं सभे. रचना के मान होखे के चाहीं ओकरा रचइता के नाम ओकरा बाद आवेला.
एह मौका पर हम दावा से कहल चाहब कि अँजोरिया से शुरू भइल भोजपुरी वेबसाइटन के परंपरा के आजु ले जियावत आइल बानी आ भोजपुरिका डाॅटकाॅमो अपना राह से बिलगल नइखे. एहिजा कवनो लेखक के जात मजहब का चलते कवनो फैसला ना लिहल जाव. हालांकि हम देखले बानी कि कुछ लोग के रचना प्रकाशित होखे लायक ना रहत रहे त उ लोग बाद मे दोसरा दुआरी जा के दरवाचा ढकचावे लागल. नया रचनाकार के बढ़ावा देबे ला कुछेक रचना त प्रकाशित क दिहिलें बाकिर सगरी रचना हमेशा प्रकाशित होखत रही एकर वादा ना कर सकींं.
कई बेर ई बाति दोहरा चुकल बानी आ आजु फेरुओ कहत बानी कि वेबसाइट चलावत एह एगारह साल का बीचे बहुते लेखक कवि गुरू गुरूघंटाल लोग से परिचय भईल, कुछ दिन ले बातचीत के दौर चलल बाकिर फेरू उ लोग कवना खोहि में समा गइलें कि आजु लउकत नइखे लोग. शायद हमरे में कवनो कमी, कवनो दोष रहल होखी जे ओह लोग के मतलबा ना सध पावल आ ओह लोग के निराश हो के लवटे के पड़ गइल. बाकिर हम बता दिहल चाहब कि हमरा एह बाति के कवनो मलाल नइखे. हम त उहे बानी जे पहिले रहनी आ आगहू रहब. भोजपुरी ला काम करीले केहू दोसरा ला ना. आ जबले जांगर सलामत रही तबले करत रहब.
आजु हीरा डोम के एह कविता के प्रकाशित क के हम ढेरे लोग के सुई चुभाएब बाकिर हमरा जरुरी लागल, जायज लागल त प्रकाशन कर दिहनी. अब रउरा सभे के नीक लागे भा बाउर.
राउर,
संपादक-प्रकाशक,
भोजपुरिका डाॅट काॅम